उत्तराखंड में फायर सीजन में वन कर्मियों को नहीं मिले अग्निरोधी सूट, नियंत्रण के लिए प्रस्ताव का इंतजार
उत्तराखंड में इस समय फायर सीजन चल रहा है और मार्च का महीना खत्म होने को है, लेकिन वन कर्मियों को अभी तक अग्निरोधी सूट और अन्य आवश्यक संसाधन ही नहीं मिल पाए हैं। इस बीच, शासन ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राज्य में वनाग्नि नियंत्रण के लिए एक प्रस्ताव भी भेजा था, जिस पर अभी तक निर्णय का इंतजार भी किया जा रहा है।
वन विभाग ने जंगल की आग के नियंत्रण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, जिनमें वन कर्मियों को अग्निरोधी सूट प्रदान करने की योजना भी शामिल है। यह सूट आपदा प्रबंधन विभाग के माध्यम से वन विभाग को दिए जाने हैं, लेकिन स्थिति यह है कि फायर सीजन 15 फरवरी से शुरू हो चुका है और मार्च का महीना समाप्त होने वाला है, फिर भी वन कर्मियों को इन सूट्स की आपूर्ति ही नहीं हो पाई है।
वर्तमान में, वन विभाग के फील्ड में लगभग 3 हजार वन कर्मी तैनात रहते हैं, जबकि फायर सीजन के दौरान यह संख्या बढ़कर करीब 4 हजार फायर वॉचर्स तक पहुंच जाती है। पिछले वर्ष बिनसर अभयारण्य में जंगल की आग के कारण कई वन कर्मियों की जान भी गई थी, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई है। साथ ही, शासन ने राज्य में वनाग्नि नियंत्रण के लिए एक 5 वर्ष की कार्ययोजना मंत्रालय को भेजी थी, जो पिछले वर्ष अक्टूबर में भेजी गई थी, लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है।
इस मुद्दे पर अपर प्रमुख वन संरक्षक वनाग्नि नियंत्रण एवं आपदा प्रबंधन, निशांत वर्मा ने बताया कि आपदा प्रबंधन विभाग से अग्निरोधी सूट जल्द उपलब्ध कराने के लिए अनुरोध भी किया गया है। इसके अलावा, मंत्रालय को भेजे गए प्रस्ताव पर बैठक भी आयोजित होनी बाकी है।
वन विभाग की तैयारी और उपाय
वन विभाग ने वनाग्नि नियंत्रण के लिए कई उपाय किए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है मौसम विभाग से वन विभाग के लिए मौसम का पूर्वानुमान देने वाला कस्टमाइज बुलेटिन। यह बुलेटिन अब वन कर्मियों को मिलना भी शुरू हो गया है। इसके अलावा, जंगल की आग की सूचना और चेतावनी देने के लिए एक मोबाइल एप भी विकसित किया गया है। वन मुख्यालय में राज्य स्तरीय एकीकृत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर भी स्थापित किया गया है, और जिलों में वनाग्नि नियंत्रण कार्यों की निगरानी के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।
हालांकि, अग्निरोधी सूट व अन्य संसाधनों की कमी इस समय एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है, और वन कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शीघ्र कदम उठाए जाने की आवश्यकता भी है।