फिल्ममेकर अनुभव सिन्हा बोले – उत्तराखंड का दृश्य चरित्र अद्भुत, यहां और फिल्में बननी चाहिएं
देहरादून। समाज की सच्चाइयों को पर्दे पर उतारने वाले फिल्म निर्माता, लेखक व निर्देशक अनुभव सिन्हा ने कहा कि उत्तराखंड का दृश्य चरित्र बेहद अद्भुत है, लेकिन जितनी फिल्में यहां बननी चाहिएं, उतनी बन ही नहीं रही हैं। ‘आर्टिकल 15’, ‘मुल्क’ व ‘थप्पड़’ जैसी चर्चित फिल्मों के निर्माता अनुभव सिन्हा ने यह बात शुक्रवार को देहरादून में पहुंचने पर कही। देश को नज़दीक से जानने की यात्रा के एक पड़ाव में सिन्हा फिल्मी दुनिया, समाज व वर्तमान परिस्थितियों पर खुलकर अपने विचार भी साझा किए।
सिन्हा ने कहा कि वह ऐसी फिल्में बनाते हैं जो देश की हकीकत को भी दिखाती हैं। उन्होंने बताया कि ‘आर्टिकल 15’ के जरिए उन्होंने जातिवाद पर, ‘मुल्क’ में सांप्रदायिक माहौल पर और ‘अनेक’ में पूर्वोत्तर राज्यों के अलगाववाद पर चोट भी की। वहीं, कोविड काल में बनी फिल्म ‘भीड़’ में मजदूरों की पीड़ा को परदे पर भी उतारा।
उन्होंने कहा, “मैं सच्ची कहानियां कहना चाहता हूं, इसलिए देश को करीब से भी जानना जरूरी है। यह भ्रम नहीं रहना चाहिए कि हम सब ही कुछ जानते हैं।”
फिल्म नीतियों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि कई राज्यों ने अपनी फिल्म नीतियों का प्रचार तो किया, लेकिन उन्हें ज़मीनी स्तर पर लागू करने में सफलता ही नहीं मिली। “फिल्म निर्माता व ब्यूरोक्रेसी के बीच संवाद की कमी सबसे बड़ी बाधा भी है,” उन्होंने कहा। अनुभव ने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड की फिल्म नीति से फिल्म उद्योग को वास्तविक लाभ भी मिलेगा, क्योंकि यह राज्य प्राकृतिक सौंदर्य व कहानी दोनों में समृद्ध है।
“गांवों में कहानियां हैं, मगर स्क्रीनप्ले का विज्ञान कोई नहीं सिखाता”
जब उनसे पूछा गया कि अब फिल्मों में गांव की कहानियां क्यों नहीं दिखतीं, तो उन्होंने कहा कि “गांवों में बहुत कहानियां लिखी भी जा रही हैं, लेकिन उन्हें परदे पर उतारने वाला कोई भी नहीं। स्क्रीनराइटिंग एक विज्ञान है, जिसे आज कोई संस्थान—न सरकारी, न निजी—ढंग से नहीं सिखा रहा।”
उन्होंने यह भी कहा कि बॉलीवुड आज देश से कटा हुआ महसूस भी होता है। “बॉलीवुड की बाकी देश से गर्भनाल कटी हुई है,” उन्होंने स्पष्ट कहा।
देवभूमि से पुराना नाता, बोले—‘यहां मकान खरीदना चाहिए’
देहरादून पहुंचने पर अनुभव सिन्हा ने स्थानीय पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद लिया और पुरानी यादों में ही खो गए। उन्होंने बताया कि उनका देवभूमि उत्तराखंड से पुराना रिश्ता है—वह 70 के दशक में करीब 9 साल तक कालागढ़ क्षेत्र में रहे हैं।
“यहां की वादियां, मौसम व लोगों की सादगी मन मोह लेती है। देहरादून में मकान खरीदना चाहिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। साथ ही उन्होंने इच्छा जताई कि जल्द ही केदारनाथ यात्रा करना चाहते हैं।
“उत्तराखंड सिर्फ खूबसूरत नहीं, कहानी कहने के लिए प्रेरणादायक भी है।” — अनुभव सिन्हा