उत्तराखंड में वन सीमाएं होंगी डिजिटल, अवैध अतिक्रमण पर लगेगा अंकुश
देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग अब जंगलों की सीमाओं को डिजिटल तरीके से तय करने की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ा रहा है। उड़ीसा की तर्ज पर तैयार की जा रही इस व्यवस्था से वनों में अवैध अतिक्रमण रोकने में मदद भी मिलेगी। फिलहाल मौके पर जंगल की सीमाओं को पहचानना मुश्किल भी होता है, क्योंकि सीमांकन के लिए लगाए गए पिलर कई जगहों से गायब ही मिलते हैं।
उड़ीसा का मॉडल बना उदाहरण
राज्य कैबिनेट से इस योजना को मंजूरी भी मिल चुकी है। वन विभाग अब तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से सीमाओं का डिजिटाइजेशन भी शुरू करेगा। इससे पहले देश में उड़ीसा ने यह तकनीक अपनाई है और वहां जंगलों की डिजिटल बाउंड्रीज तय भी हो चुकी हैं।
हजारों पिलर गायब, मुश्किल में विभाग
हाल ही में मसूरी डिवीजन में 7000 से ज्यादा पिलर गायब भी पाए गए थे। यही स्थिति राज्य के अन्य डिवीजनों में भी देखने को भी मिली है। ऐसे में सीमाओं की सटीक पहचान करना विभाग के लिए एक चुनौती बना हुआ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद आईएफएस अधिकारी पराग मधुकर को इस अभियान का नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया है।
चार से पांच साल लग सकते हैं
वन विभाग का अनुमान है कि पूरे राज्य में सीमाओं का डिजिटाइजेशन पूरा करने में 4 से 5 वर्ष का समय लग सकता है। फिलहाल इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ डिवीजनों में ही शुरू किया जाएगा।
भविष्य की बड़ी उपलब्धि
मुख्य वन संरक्षक (हॉफ) समीर सिन्हा ने बताया कि
एक बार डिजिटाइजेशन होने के बाद वन क्षेत्र की हर इंच जमीन का स्पष्ट रिकॉर्ड भी रहेगा और भविष्य में सीमाओं से जुड़ी समस्याओं का स्थायी समाधान भी हो सकेगा। यह राज्य के वन विभाग के लिए बड़ी उपलब्धि भी होगी।