रामपुर तिराहा कांड: हाईकोर्ट सख्त, यूपी सरकार से दो हफ्ते में मांगा जवाब – 30 साल से लंबित है न्याय
आख़िर कब मिलेगा न्याय? हाईकोर्ट ने रामपुर तिराहा कांड में मांगा यूपी सरकार से जवाब
नैनीताल: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सबसे चर्चित व दर्दनाक मामलों में से एक रामपुर तिराहा कांड एक बार फिर अदालत की चौखट पर है। नैनीताल हाईकोर्ट ने इस बहुचर्चित मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को 2 सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया है।
कोर्ट के सख्त सवाल:
न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ में हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने यूपी सरकार से पूछा कि साल 1994 में दर्ज किए गए 6 मुकदमे फिलहाल किस अदालत में विचाराधीन हैं और उनकी मौजूदा स्थिति क्या है। कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि आखिर तीन दशक बीत जाने के बाद भी इन मामलों में कोई प्रगति आखिर क्यों नहीं हुई।
तीन दशक से रुकी सुनवाई:
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि
30 वर्षों से लंबित इन मामलों की सुनवाई अब तक नहीं हो सकी है। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पत्र के आधार पर मुजफ्फरनगर के जिला जज ने सभी 6 मुकदमे मुजफ्फरनगर कोर्ट को भी सौंप दिए थे, लेकिन तब से आगे की कार्यवाही ही ठप पड़ी है।
दर्दनाक घटनाएं, अभी तक अधूरी न्याय प्रक्रिया:
राज्य आंदोलनकारी के वकील रमन शाह ने बताया कि इस कांड में 7 महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ था, जबकि 17 अन्य आंदोलनकारियों को बेरहमी से प्रताड़ित भी किया गया था। प्रमुख आरोपी तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह समेत 7 अन्य आरोपितों के खिलाफ सीबीआई ने मामला दर्ज कर मुजफ्फरनगर कोर्ट में आरोप पत्र भी दायर किए थे, लेकिन सुनवाई आज तक शुरू ही नहीं हो सकी।
राज्यपाल की अनुमति बनी बाधा:
आश्चर्यजनक रूप से, मुख्य आरोपी अनंत कुमार सिंह को राज्यपाल की ओर से अभियोजन की अनुमति नहीं मिलने के कारण मुकदमे से राहत भी मिल गई थी। सीबीआई ने इस मामले में घातक हथियारों से हत्या, गंभीर चोट और फायरिंग जैसी गंभीर धाराएं भी लगाई थीं।
क्या है रामपुर तिराहा कांड?
2 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड की मांग को लेकर दिल्ली कूच कर रहे आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग भी कर दी थी। इस घटना में 7 आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी, कई महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुईं और दर्जनों घायल भी हुए थे। मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए गए थे, परंतु न्याय की प्रक्रिया अभी तक भी अधूरी है।
अब देखना होगा कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद क्या यूपी सरकार कोई ठोस जवाब दे पाती है और क्या 30 साल से टलता आ रहा न्याय अब गति पकड़ेगा या नही।