नैनीताल हाईकोर्ट की सख्ती: एसोसिएट प्रोफेसर रमेश सिंह के तबादले और जांच पर लगाई रोक, महिला आयोग और प्रोफेसर को भेजा नोटिस
नैनीताल | उत्तरकाशी पीजी कॉलेज में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रमेश सिंह और उनकी पत्नी डॉ. विनीता सिंह के तबादले व जांच के आदेशों को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में एक बार फिर अहम सुनवाई हुई। कोर्ट ने राज्य महिला आयोग और शिकायतकर्ता महिला प्रोफेसर को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने महिला आयोग के आदेशों पर भी फिलहाल रोक लगा दी है।
क्या है मामला?
डॉ. रमेश सिंह ने याचिका दायर कर कहा कि 14 अप्रैल, भीमराव आंबेडकर जयंती के अवसर पर उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेज खोलकर कार्यक्रम आयोजित करने का आदेश दिया था। लेकिन कॉलेज प्राचार्य ने 12 अप्रैल को ही कार्यक्रम कराने का निर्देश दिया। इस पर डॉ. सिंह ने आपत्ति जताई, जिसके बाद उनके खिलाफ दो साल पुराने कथित यौन शोषण के झूठे आरोप लगाकर उन्हें जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया।
याचिकाकर्ता का दावा है कि इस मामले में न तो कोई लिखित शिकायत है और न ही एफआईआर दर्ज हुई है। फिर भी कार्रवाई की गई, जो नियमों के खिलाफ है।
तबादला और महिला आयोग की जांच भी बनी विवाद का हिस्सा
बाद में उच्च शिक्षा विभाग ने 16 अप्रैल को आदेश जारी कर डॉ. रमेश सिंह और उनकी पत्नी को 300 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ के बलुवाकोट डिग्री कॉलेज में अटैच कर दिया। डॉ. सिंह ने इस आदेश को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने तबादले के आदेश पर रोक लगाते हुए कड़ी टिप्पणी की:
“अधिकारी खुद को जज न समझें।”
इस बीच शिकायतकर्ता महिला प्रोफेसर ने राज्य महिला आयोग में शिकायत दी कि उन्हें अब भी प्रताड़ित किया जा रहा है। इसके आधार पर आयोग ने मामले की जांच के आदेश जारी किए।
कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:
“जब मामला पहले से ही हाईकोर्ट में लंबित है, तो फिर महिला आयोग से समानांतर जांच करवाने की क्या आवश्यकता थी?”
कोर्ट ने आयोग के आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए आयोग और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।
सभी याचिकाएं होंगी एक साथ सुनवाई के लिए संबद्ध
कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं को आपस में संबद्ध कर दिया है, ताकि पूरे प्रकरण की एक साथ सुनवाई की जा सके।
इस प्रकरण में हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणियों और कार्रवाई से यह स्पष्ट संकेत गया है कि बिना साक्ष्य और वैधानिक प्रक्रिया के किसी भी कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही करना न्यायसंगत नहीं है। आने वाले दिनों में कोर्ट की अगली सुनवाई इस पूरे विवाद की दिशा तय करेगी।