उत्तराखंड सचिवालय में ट्रांसफर पॉलिसी पर ठहराव: पारदर्शिता पर उठे सवाल

देहरादून, 13 सितंबर 2025:
उत्तराखंड सरकार द्वारा सचिवालय कर्मियों के लिए जारी संशोधित स्थानांतरण नीति 2025 को दो महीने पूरे होने को हैं, लेकिन अब तक सचिवालय के भीतर नीति के अनुरूप तबादले नहीं हो पाए हैं। इससे सचिवालय की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

नीति बनी, अमल अधूरा

14 जुलाई 2025 को मुख्य सचिव आनंद वर्धन के हस्ताक्षर से सचिवालय कर्मियों के लिए संशोधित स्थानांतरण नीति जारी की गई थी। इसका उद्देश्य वर्षों से एक ही विभाग या पद पर जमे कर्मियों का स्थानांतरण कर प्रशासनिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना था। लेकिन 31 जुलाई को तबादला सत्र समाप्त होने के बावजूद, नीति के अनुसार तबादले नहीं हो सके।

सवालों के घेरे में कार्यपालिका का सर्वोच्च कार्यालय

उत्तराखंड सचिवालय, जो राज्य की नीतियों का नियामक केंद्र माना जाता है, वही पारदर्शी नीति लागू करवाने में विफल दिख रहा है। इससे यह आशंका गहराती जा रही है कि जब सचिवालय जैसे उच्चस्तरीय संस्थान में पॉलिसी का पालन नहीं हो पा रहा है, तो राज्य के अन्य विभागों में इसकी क्या स्थिति होगी?

सचिवालय संघ की सक्रियता और आरोप

उत्तराखंड सचिवालय संघ ने मुख्य सचिव के समक्ष नीति लागू करने की मांग रखी थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है। संघ के पूर्व अध्यक्ष दीपक जोशी ने आरोप लगाए हैं कि नीति आने के बाद भी कुछ तबादले गुपचुप तरीके से किए गए हैं, जो पॉलिसी के मापदंडों (3 और 5 वर्ष) के अनुरूप नहीं थे।

“तबादला पॉलिसी का सख्ती से पालन होना चाहिए। कुछ तबादले नियमों के बाहर जाकर किए गए हैं, जिन्हें सचिवालय प्रशासन को गंभीरता से लेना चाहिए।”
दीपक जोशी, पूर्व अध्यक्ष, उत्तराखंड सचिवालय संघ

विधानसभा सत्र बना बहाना?

प्रारंभ में माना गया कि गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र के चलते तबादले नहीं हो सके। लेकिन सत्र समाप्त हुए भी लंबा समय हो गया है और अब तक स्थानांतरण प्रक्रिया पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

प्रशासन की चुप्पी

इस विषय में सचिवालय प्रशासन के सचिव दीपेंद्र चौधरी से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका। जैसे ही उनका पक्ष मिलेगा, उसे भी इस रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा।

संशोधित ट्रांसफर पॉलिसी का उद्देश्य पारदर्शिता और निष्पक्षता था, लेकिन सचिवालय में ही इस नीति की अनदेखी राज्य की नौकरशाही में सुधार की कोशिशों पर सवालिया निशान लगाती है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि नीति को केवल दस्तावेजी घोषणा न बनने दें, बल्कि इसे ईमानदारी से लागू कर एक उदाहरण प्रस्तुत करें।