उत्तराखंड में मानसून और पश्चिम विक्षोभ से बढ़ा आपदा का खतरा, वैज्ञानिकों ने चेताया
इस बार उत्तराखंड में सामान्य से कहीं अधिक व तेज बारिश दर्ज की गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह मानसून के साथ आए पश्चिम विक्षोभ भी हैं। जून से अगस्त के बीच प्रदेश में कुल 16 पश्चिम विक्षोभ सक्रिय हुए, जो पिछले दो दशकों में पहली बार ही देखा गया है। आने वाले वर्षों में ऐसी घटनाओं में और भी वृद्धि हो सकती है।
अटरिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. माधवन नायर राजीवन ने वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में आयोजित व्याख्यान के दौरान बताया कि इतने अधिक पश्चिम विक्षोभ आना असामान्य ही है। पहले बारिश व ठहराव के बीच का अंतराल लंबा होता था, लेकिन अब यह अंतर कम हो गया है, जिससे भूमि की नमी बढ़ने के साथ आपदाओं का खतरा ज्यादा भी हो गया है।
डॉ. माधवन के अनुसार, इस बदलाव से अचानक बाढ़ व भूस्खलन जैसी घटनाओं की संभावना भी बढ़ रही है। उन्होंने चेताया कि भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत भी करना, मौसम वेधशालाओं को बेहतर बनाना व हिमालयी क्षेत्र में स्वचालित मौसम केंद्रों का विस्तार करना बेहद ही जरूरी है।
उन्होंने कहा कि एक-दो दिन पहले जारी की जाने वाली चेतावनियों को और सटीक बनाना होगा और सबसे अहम बात यह है कि समय रहते लोगों तक सही सूचना भी पहुंचाई जाए।
व्याख्यान के दौरान वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत, डॉ. राकेश भांबरी समेत कई वैज्ञानिक भी मौजूद रहे।