2 लाख हेक्टेयर में किए गए इंतजाम के बावजूद धधकते रहे जंगल, सैकड़ों हेक्टेयर वन जलकर राख

वन महकमे की नियंत्रित फुकान की प्रक्रिया पर सवाल, बावजूद इसके जंगलों में आग की घटनाएं जारी

उत्तराखंड: पिछले वर्ष वन महकमे ने जंगलों में आग को नियंत्रित करने के लिए 2 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में नियंत्रित फुकान (कंट्रोल बर्निंग) किया, लेकिन इसके बावजूद जंगलों में आग की घटनाओं पर नियंत्रण ही नहीं पाया जा सका। वन महकमे की इस प्रक्रिया भी पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि इसके बाद भी प्रदेश के जंगल भी धधकते रहे।

वन विभाग के द्वारा जंगलों में आग से बचाव के लिए फायर लाइन की सफाई, कंट्रोल बर्निंग व जागरूकता अभियान जैसे कदम उठाए जाते हैं। लेकिन, इन प्रयासों के बावजूद जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार जारी ही हैं। पिछले वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो वन विभाग ने 25 वन प्रभागों में 201253.94 हेक्टेयर में नियंत्रित फुकान किया, लेकिन इसके बाद भी 1273 आग की घटनाएं भी सामने आईं, जिससे 1768 हेक्टेयर क्षेत्र में जैव विविधता प्रभावित हुई।

कंट्रोल बर्निंग के प्रभावों पर अध्ययन की कमी

कंट्रोल बर्निंग का उद्देश्य सूखी पत्तियों जैसे फ्यूल लोड को हटाना है, लेकिन यह प्रक्रिया जंगलों पर क्या प्रभाव डालती है, इस पर शायद ही कभी कोई अध्ययन हुआ हो। वन विभाग के पास इस संबंध में कोई ठोस जवाब ही नहीं है, जबकि विभाग में वन अनुसंधान जैसी शाखाएं मौजूद भी हैं।

बजट जारी होने में देरी

जंगल की आग पर काबू पाने के लिए वन विभाग ने 15 फरवरी से 15 जून तक के फायर सीजन में कई बार बजट भी जारी किया, लेकिन इसमें बड़ी रकम मई और जून माह में ही जारी की गई। पिछले वर्ष मार्च में 9 लाख रुपये का बजट जारी हुआ, जबकि जून माह में 1 करोड़ 10 लाख रुपये का बजट जारी हुआ। इसके अलावा, कैंपा से 20 मई को सवा पांच करोड़ रुपये से अधिक की राशि जारी की गई थी।

कंट्रोल बर्निंग का उद्देश्य और विभाग की ओर से प्रयास

वन विभाग की ओर से जंगलों में आग से बचाव के लिए हर संभव प्रयास भी किए जा रहे हैं, जिसमें सूखे पत्तों और अन्य अवशेषों को हटाने के लिए 10 रुपये प्रति किलो पिरुल देने का आदेश भी जारी किया गया है। फायर लाइन की सफाई की जा रही है और कई अन्य कदम उठाए गए हैं। वन विभाग का कहना है कि कंट्रोल बर्निंग के जरिए जंगल से फ्यूल लोड को कम किया जाता है, जिससे भविष्य में आग के बड़े हादसों को रोका भी जा सके। – आरके सुधांशु, प्रमुख सचिव वन