Kanwar Yatra 2025: न करें प्रतिस्पर्धा, न दिखाएं ताकत – आस्था के लिए एक बूंद गंगाजल ही है पर्याप्त, महादेव के भक्तों से संतों और विशेषज्ञों की अपील

आस्था बनाम प्रतिस्पर्धा: क्षमता से अधिक गंगाजल उठाने की प्रवृत्ति पर संत-महंतों और चिकित्सकों ने जताई गहरी चिंता

हरिद्वार/उत्तराखंड: कांवड़ यात्रा, जो भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा व भक्ति का प्रतीक भी मानी जाती है, आजकल एक नई दिशा में मुड़ती भी दिख रही है। पिछले कुछ वर्षों से इस यात्रा में शारीरिक प्रतिस्पर्धा व दिखावे का एक नया चलन भी बन गया है—जहां श्रद्धालु, विशेषकर युवा, 100 से 200 लीटर तक गंगाजल अपने कंधों पर उठाकर भी ले जा रहे हैं।

इस चलन से न केवल संत-महंत बल्कि चिकित्सक व आमजन भी चिंतित हैं। उनका कहना है कि यह परंपरा से भटकाव है और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा भी बन सकता है।

“महादेव भाव से प्रसन्न होते हैं, न कि भारी वजन से”

जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राज्य राजेश्वराश्रम महाराज (कनखल, हरिद्वार) ने कहा,

“महादेव तो एक बूंद या एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। भारी वजन उठाने से न तो शिव खुश होते हैं और न ही मां गंगा। महिलाओं, बच्चों व वृद्धों तक को भारी कांवड़ उठाते देखना दुखद भी है। यह आस्था नहीं, अंधभक्ति की सीमा भी है।”

“यह आस्था का पर्व है, न कि दमखम का प्रदर्शन”

महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी (भारत माता मंदिर) ने युवाओं से अपील करते हुए कहा,

“कांवड़ यात्रा का बदलता स्वरूप चिंताजनक भी है। यह आस्था का पर्व है, इसे ताकत दिखाने का अखाड़ा न बनाएं। जल क्षमता अनुसार ही उठाएं व कांवड़ को हर जगह रखना इसकी पवित्रता पर सवाल भी खड़ा करता है।”

“यह अभिषेक का पर्व है, प्रतियोगिता का नहीं”

श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज (अध्यक्ष, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद) ने कहा,

“डेढ़-दो क्विंटल गंगाजल उठाकर 10 कदम चलना व फिर रुक जाना—यह कोई तप नहीं है। यह दिखावा हमारी परंपरा तो नहीं है। यह पर्व शांति व श्रद्धा से मनाने का है, ताकत के प्रदर्शन से नहीं।”

“क्षमता से अधिक वजन उठाना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक”

डॉ. संजय सिंह (विभागाध्यक्ष, रोग निदान विभाग, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय) ने चिकित्सा दृष्टिकोण से चेतावनी दी,

“जो लोग नियमित रूप से भारी वजन नहीं उठाते, उनके लिए अचानक 100 लीटर गंगाजल लेकर चलना रीढ़ की हड्डी, कंधों व स्नायु तंत्र को गंभीर नुकसान भी पहुंचा सकता है। आयुर्वेद में भी कहा गया है कि व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार ही भार को उठाना चाहिए।”

कांवड़ यात्रा श्रद्धा व समर्पण का पर्व है, न कि प्रतिस्पर्धा का। जहां एक ओर भगवान शिव भाव से प्रसन्न होते हैं, तो वहीं दूसरी ओर इस तरह की होड़ युवाओं के स्वास्थ्य व धार्मिक परंपरा दोनों के लिए खतरा भी बन रही है। संतों व चिकित्सकों की यह सांझा अपील यही कहती है:
“आस्था दिखाएं, दिखावा नहीं।”