उत्तराखंड ने 16वें वित्त आयोग के सामने रखी 42 हजार करोड़ की ‘स्टेट नीड ग्रांट’ की मांग, राजस्व घाटे की जगह नए फॉर्मूले पर जोर

देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने 16वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य की विशेष भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ‘स्टेट नीड ग्रांट’ का मुद्दा प्रमुखता से उठाया भी है। सरकार ने आयोग से लगभग ₹42,000 करोड़ की विशेष अनुदान राशि की मांग भी की है, ताकि राज्य को राजस्व घाटा अनुदान न मिलने की स्थिति में वित्तीय संतुलन भी बनाए रखा जा सके।

गौरतलब है कि वर्ष 2023-24 के बाद से उत्तराखंड राजस्व घाटे से उबर चुका है, जिस कारण आयोग द्वारा राज्य को अब राजस्व घाटा अनुदान देने की सिफारिश भी नहीं की जाएगी। ऐसे में राज्य सरकार अब राजस्व घाटा के स्थान पर स्टेट नीड ग्रांट पर जोर भी दे रही है।

वन क्षेत्र, पर्यावरणीय सेवाएं और आपदाएं बनीं मुख्य आधार

उत्तराखंड सरकार ने अपनी मांग के समर्थन में जो प्रमुख तर्क पेश किए हैं, उनमें राज्य का बड़ा वन क्षेत्र प्रमुख भी है। राज्य सरकार का कहना है कि इस वन आवरण के संरक्षण से देश को हर वर्ष लगभग ₹92,000 करोड़ की पर्यावरणीय सेवाएं भी मिल रही हैं। इसके अतिरिक्त, पर्यावरणीय प्रतिबंधों के चलते बाधित हुई जल विद्युत परियोजनाएं, वनाग्नि, हिमस्खलन व भू-धंसाव जैसी विशेष आपदाएं, राज्य की वित्तीय आवश्यकताओं को और बढ़ा भी देती हैं।

वित्त सचिव दिलीप जावलकर ने जानकारी दी कि राज्य सरकार ने आयोग को पहले ही एक विस्तृत मेमोरेंडम भी सौंपा है। इसके साथ ही स्टेट नीड ग्रांट पर केंद्रित एक अलग प्रस्तुति व दस्तावेज भी आयोग को दिए जाएंगे।

“हमने राज्य की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत आधारों पर अनुदान की मांग भी की है। आयोग ने हमारी बातों को गंभीरता से सुना है और हम आशान्वित हैं कि इस पर सकारात्मक विचार किया जाएगा,” — दिलीप जावलकर, सचिव वित्त

15वें वित्त आयोग से क्या मिला था उत्तराखंड को?

मद तय आवंटन (करोड़ में)
केंद्रीय करों में हिस्सेदारी ₹47,234
राजस्व घाटा अनुदान ₹28,147
त्रिस्तरीय पंचायतें और शहरी निकाय ₹3,384
आपदा प्रबंधन ₹5,752
स्वास्थ्य क्षेत्र में स्थानीय निकाय अनुदान ₹7,797
कुल ₹85,314

 

राज्य सरकार का कहना है कि 15वें वित्त आयोग के तहत प्राप्त राजस्व घाटा अनुदान ने राज्य की अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने में बड़ी भूमिका भी निभाई थी। अब जब यह सहायता समाप्त हो रही है, तो उसे भरने के लिए ‘स्टेट नीड ग्रांट’ का प्रस्ताव भी अनिवार्य विकल्प बन गया है।

उत्तराखंड सरकार ने 16वें वित्त आयोग के सामने राज्य की विशिष्ट भौगोलिक, पर्यावरणीय और आपदा-प्रवण स्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक विचारशील और रणनीतिक मांग रखी है। अब देखना यह है कि आयोग इन तर्कों को किस तरह से संज्ञान में लेकर आगे की सिफारिशें भी करता है।