उत्तराखंड हाईकोर्ट के दो अहम फैसले: हत्या के दोषी की सजा निलंबित, गैंगरेप के दोषी की सजा में आंशिक राहत

नैनीताल | उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को दो अहम मामलों में फैसले सुनाए, जिनमें एक हत्या का मामला और दूसरा नाबालिग के साथ गैंगरेप से जुड़ा है। इन दोनों फैसलों ने न्याय प्रक्रिया और सजा निर्धारण पर नए सवाल भी खड़े किए हैं।

हत्या के दोषी की सजा को हाईकोर्ट ने बताया ‘विचित्र’, सजा पर लगाई रोक

उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ — मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय — ने एक हत्या के मामले में निचली अदालत के फैसले को “प्रथम दृष्टया विचित्र” करार देते हुए आरोपी की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया है और आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी किया है।

हाईकोर्ट के अनुसार, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि मृत्यु हार्ट अटैक से हुई थी और यह घटना के तीन सप्ताह बाद की है। इसके बावजूद आरोपी को हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया।

साथ ही, कोर्ट ने यह भी पाया कि:

कथित हत्या का हथियार कभी बरामद नहीं हुआ। प्रॉसिक्यूशन के दस्तावेजों में विरोधाभास हैं। आरोपी को मुख्य गवाह की जिरह का अवसर नहीं दिया गया, जो निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों के खिलाफ है।

इन परिस्थितियों को देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि जब तक मामला विचाराधीन है, सजा को स्थगित किया जाए, और आरोपी को 20,000 रुपये के निजी मुचलके और समान राशि के एक जमानतदार पर रिहा किया जाए।

गैंगरेप के दोषी की सजा में आंशिक राहत, दोषसिद्धि बरकरार

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 2015 में एक 9 वर्षीय बच्ची के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में दोषी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया है।

मामले का विवरण:

आरोपी कन्हाई बैरागी (घटना के समय उम्र: 18 वर्ष, 10 दिन ),  दिनेशपुर , धारा 376D के तहत आजीवन कारावास धारा 366 के तहत 10 साल की कैद कुल जुर्माना ₹70,000

हाईकोर्ट का निर्णय:

दोषसिद्धि पूर्णतः सही मानी गई। पीड़िता, उसकी मां और चाचा के बयानों, मेडिकल रिपोर्ट आदि को विश्वसनीय साक्ष्य माना गया। हालांकि, जस्टिस रविंद्र मैठाणी की एकल पीठ ने यह माना कि अपराध गंभीर है, परंतु आरोपी की अल्पायु और आपराधिक इतिहास न होने के कारण आजीवन कारावास अत्यधिक है।

अतः कोर्ट ने: धारा 376D के तहत सजा को घटाकर 20 साल का कठोर कारावास कर दिया। अन्य सजा और जुर्माना यथावत रखा। जुर्माने की राशि पीड़िता को देने का निर्देश भी जारी किया।

 आदेश:

दोषी की आपराधिक अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई है। लेकिन दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, उसे फिर से हिरासत में लेकर बाकी सजा पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं।

न्याय व्यवस्था के लिए अहम संकेत

इन दोनों फैसलों से स्पष्ट है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट न केवल तथ्यों और कानूनों की बारीकी से समीक्षा कर रहा है, बल्कि न्यायिक संतुलन को भी ध्यान में रख रहा है। जहां एक ओर बिना पर्याप्त साक्ष्य के दी गई सजा को चुनौती दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर जघन्य अपराधों में दोषियों को सजा देने के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण भी अपनाया जा रहा है।