संकट में साल के जंगल: शिवालिक रेंज से मिटती प्राकृतिक शील्ड

रामनगर: शिवालिक रेंज के साल वृक्ष संकट की ओर बढ़ते ही जा रहे हैं। देहरादून से लेकर नेपाल सीमा तक फैली साल के घने जंगलों की श्रृंखला जहां एक ओर जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरी ओर पहाड़ों को भूस्खलन व मिट्टी कटाव से बचाने वाली प्राकृतिक शील्ड भी है। लेकिन बदलते मौसम, जलवायु परिवर्तन व साल बोरर जैसे कीटों के खतरे से इनका अस्तित्व खतरे में भी है।

पर्यावरणविदों का कहना है कि साल वृक्ष का प्राकृतिक पुनर्जनन बेहद ही धीमा है। पत्तियों की मोटी परत बीजों को जमीन तक पहुंचने ही नहीं देती, जिससे अंकुरण रुक ही जाता है। यही कारण है कि नए पौधे पर्याप्त संख्या में नहीं उग पा रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर वैज्ञानिक पद्धतियों व वन विभाग की सतर्कता से कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में साल के जंगल विलुप्त होने की कगार पर भी पहुंच सकते हैं।

वन विभाग वर्तमान में एसोसिएटेड नेचुरल रिप्रोडक्शन (ANR) योजना के तहत साल के जंगलों को बचाने की कवायद भी कर रहा है। इसके लिए कैनोपी मैनेजमेंट व सिलेक्शन फार्मिंग तकनीक अपनाई जा रही है, ताकि स्वाभाविक रूप से उगे पौधों को सुरक्षित रखकर बढ़ावा भी दिया जा सके।

विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि बीजों का सुरक्षित संग्रह व उचित मौसम में अंकुरण सुनिश्चित किया जाए, तभी साल के पेड़ों की संख्या बढ़ाई भी जा सकती है।