‘एक देश, एक चुनाव’: संयुक्त संसदीय समिति ने सभी राज्यों से मांगी छह माह में रिपोर्ट
देहरादून : ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) को लेकर देशभर में मंथन अब तेज हो गया है। इसी सिलसिले में सुझाव एकत्र कर रही संयुक्त संसदीय समिति ने अब सभी राज्यों से विभागवार विस्तृत रिपोर्ट 6 माह के भीतर मांगी है। समिति के अध्यक्ष व वरिष्ठ सांसद पी.पी. चौधरी ने बताया कि यह रिपोर्ट राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों के माध्यम से तैयार की जाएगी, जिसमें अलग-अलग चुनावों से होने वाले खर्च व व्यावहारिक दिक्कतों का ब्यौरा शामिल होगा।
पी.पी. चौधरी ने कहा कि अगर देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इससे करीब 5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है, जो कि भारत की जीडीपी का 1.6 प्रतिशत भी है।
देहरादून में दो दिवसीय संवाद
21 मई को समिति का 41 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल उत्तराखंड की राजधानी दून पहुंचा, जिसमें 39 सांसद और 2 मनोनीत सदस्य शामिल थे। दो दिनों तक समिति ने राज्य के विभिन्न हितधारकों से ‘एक देश, एक चुनाव’ पर सुझाव भी लिए। गुरुवार को मीडिया से बातचीत करते हुए पी.पी. चौधरी ने बताया कि समिति अब तक महाराष्ट्र व उत्तराखंड से सुझाव ले चुकी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1967 तक लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन बाद में यह प्रक्रिया भंग भी हो गई।
क्या है आगे की योजना?
समिति ने सभी राज्यों से आग्रह किया है कि वे ‘एक साथ चुनाव’ के प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभावों का आकलन कर विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत भी करें। इससे समिति को अपनी रिपोर्ट और प्रभावी ढंग से तैयार करने में मदद भी मिलेगी। चौधरी ने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है, और समिति जल्दबाज़ी में कोई भी निष्कर्ष नहीं निकालेगी।
अप्रैल-मई को बताया उपयुक्त समय
चुनावों के लिए अनुकूल समय पर चर्चा करते हुए समिति अध्यक्ष ने कहा कि अप्रैल-मई का महीना देशभर में मतदान के लिए सबसे उपयुक्त रहता है। उन्होंने कहा कि चुनावों के दौरान लगभग 4.85 करोड़ श्रमिकों का स्थानांतरण भी होता है, जिससे उद्योग-धंधों पर भी असर भी पड़ता है।
सरकार बदली तो कार्यकाल वही रहेगा
‘एक देश, एक चुनाव’ व्यवस्था के तहत अगर केंद्र या किसी राज्य सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त भी होता है, तो नई सरकार केवल बचे हुए कार्यकाल के लिए ही काम भी करेगी। इसके बाद निर्धारित समय पर दोबारा सभी चुनाव एक साथ कराए भी जाएंगे।
कांग्रेस के विरोध पर पी.पी. चौधरी ने कहा कि जब उन्हें इस प्रणाली के आर्थिक व प्रशासनिक लाभ बताए जाएंगे, तो संभव है वे भी समर्थन करें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में जापान व जर्मनी की तरह संसद के भीतर ही नया प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री चुने जाने की व्यवस्था भी अपनाई जा सकती है।