नदी-गदेरों के किनारे बसती नई आबादी बनी खतरे का कारण, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

देहरादून | 15 सितंबर 2025:
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में नदियों और गदेरों (छोटी सहायक नदियों) के किनारे बस रही नई बस्तियाँ अब खुद के लिए खतरा बनती जा रही हैं। बीते कुछ वर्षों में उत्तरकाशी से लेकर देहरादून तक के कई क्षेत्रों में यह देखा गया है कि नदियां अपने पुराने प्राकृतिक मार्गों पर लौट रही हैं, जिससे जन-धन की हानि हो रही है।

वर्ष 2022 की घटनाएं बनीं चेतावनी

विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2022 में देहरादून के मालदेवता क्षेत्र और उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल में इस तरह की घटनाएं देखी गई थीं, जहां सौंग, बांदल और खीरगंगा जैसी नदियों ने पुराने रास्तों पर लौटकर क्षेत्र में तबाही मचाई। गदेरे (तेलगाड) से मलबा आने के कारण भागीरथी नदी के बहाव मार्ग में भी परिवर्तन देखा गया, जिससे आसपास के इलाकों में कटाव और नुकसान की घटनाएं सामने आईं।

पुराने अनुभवों से सीखने की जरूरत

दून विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. डीडी चुनियाल का कहना है कि पूर्वजों की समझ प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित थी। वे नदी-गदेरों से सुरक्षित दूरी पर घर बनाते थे और भूकंप जैसे आपदाओं को ध्यान में रखते हुए लकड़ी और पत्थर से बने हल्के मकानों का निर्माण करते थे।

डॉ. चुनियाल के अनुसार,

“नदी जब अपने पुराने मार्ग पर लौटती है, तो जो निर्माण कार्य उसके प्रवाह में होते हैं, वे सबसे पहले इसकी चपेट में आते हैं। हमें प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझते हुए विकास कार्य करने चाहिए।”

मानव हस्तक्षेप से बढ़ रहा जोखिम

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के पूर्व अपर महानिदेशक त्रिभुवन सिंह पांगती ने कहा कि जब नदियों और गदेरों के प्रवाह में कोई व्यवधान आता है, तो वे अपना रास्ता बदल लेती हैं। लेकिन समय आने पर वे फिर अपने प्राकृतिक मार्ग पर लौटती हैं। उन्होंने कहा कि

“अक्सर लोग मान लेते हैं कि नदी सिकुड़ गई है और किनारे निर्माण कर लेते हैं, लेकिन जैसे ही वर्षा या आपदा के समय जल स्तर बढ़ता है, तो वही नदी अपना असली रूप दिखाती है।”

भागीरथी के बहाव में बदलाव, मलबा बना कारण

सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता संजय राज के अनुसार, हालिया आपदा के दौरान भागीरथी नदी का बहाव दिशा बदलकर दाहिनी ओर चला गया, जो कि पहले मध्य या बाईं ओर बहता था। यह स्थिति हर्षिल क्षेत्र में देखने को मिली। कटाव को रोकने के लिए अब सुरक्षा स्ट्रक्चर बनाए जाने की योजना पर काम हो रहा है।

वहीं वाडिया भूवैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि तेलगाड गदेरे से आए मलबे ने भागीरथी की भू-आकृति (Geomorphology) को ही बदल दिया है।

विशेषज्ञों की सलाह:

  • नदियों और गदेरों से सुरक्षित दूरी पर ही निर्माण करें।

  • किसी नदी के जलस्तर को देख कर निर्णय लेना खतरनाक हो सकता है

  • आपदा-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण से पहले भू-वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक है।

  • विकास कार्यों में स्थानीय भौगोलिक और पारिस्थितिक सन्तुलन का ध्यान रखा जाए।

उत्तराखंड जैसे संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में अधोसंरचना विकास और पर्यावरणीय संतुलन के बीच संतुलन बैठाना आवश्यक है। यदि प्राकृतिक नियमों की अनदेखी की गई, तो नदियाँ अपनी राह खुद बना लेंगी—और तब उसका खामियाजा इंसान को भुगतना पड़ेगा।