जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: तापमान बढ़ने से हिमालयी ग्लेशियरों का घातक नुकसान, गंगा-यमुना पर गहरा संकट

हिमालय में जलवायु परिवर्तन के गंभीर दुष्प्रभाव भी नजर आ रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर तेजी से भी कम हो रहे हैं। इसके चलते गंगा-यमुना जैसी नदियों में जल आपूर्ति व जलवायु स्थिरता खतर में है।

यह बात मिजोरम विश्वविद्यालय, आइजोल के प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती व सुरजीत बनर्जी के 30 वर्ष के अध्ययन में सामने आई। मूल रूप से चमोली निवासी प्रो. विश्वंभर प्रसाद सती ने कहा, हिमालय तीव्र परिवर्तन से गुजर भी रहा है। इससे न केवल स्थानीय आबादी को बल्कि वैश्विक जलवायु को खतरा है। बर्फ की चादर की स्थानिक-कालिक गतिशीलता व बर्फ के टुकड़ों का विखंडन एक गंभीर चिंता का विषय भी हैं। विशेष रूप से गंगा व यमुना जैसी महत्वपूर्ण नदियों को पोषित करने वाले ग्लेशियरों के लिए। पिछले कुछ दशकों में केंद्रीय हिमालय ने गर्मी में बहुत अधिक वृद्धि भी देखी है, जिससे ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने व बर्फ की चादर में कमी हो रही है। गंगोत्री, यमुनोत्री, मिलम व पिंडारी जैसे ग्लेशियर भी कमजोर हैं। यहां ग्लेशियर पीछे तो हट ही रहे हैं, इनकी मोटाई कम हो रही है।

अध्ययन में सामने आया कि मोटी बर्फ की चादर में निरंतर कमी भी हो रही है। वर्ष 1991 से वर्ष 2021 तक शिखर पर बर्फ अवधि के दौरान मोटी बर्फ का क्षेत्र 10,768 वर्ग किलोमीटर से घटकर 3,258.6 वर्ग किलोमीटर ही रह गया, जो एक खतरनाक कमी को दर्शाता भी है।

इसके विपरीत, पतली बर्फ की चादर वर्ष 1991 में 3,798 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर वर्ष  2021 में 6,863.56 वर्ग किलोमीटर हो गई, जिससे इस क्षेत्र में गर्मी भी बढ़ रही है। कहा, औली व उसके आसपास के क्षेत्रों जो पहले वर्ष भर बर्फ से ढके रहते थे, अब वहां बर्फ ही गायब हो गई है।

निचले ऊंचाई वाले क्षेत्रों जैसे नैनीताल में बर्फबारी की आवृत्ति में भारी कमी भी आई है। 1990 के दशक में यहां अक्सर बर्फबारी भी होती थी, लेकिन अब इसकी आवृत्ति 2 या 3 वर्षों में एक बार होती है। सिकुड़ते ग्लेशियर से जल की कमी होगी जो पहले से ही जल संकट से भी जूझ रहे क्षेत्र के लिए खतरा है।