उत्तराखंड: पांच साल में 11 IFS अधिकारियों की पेंशन पर संकट, कई अब भी जांच के घेरे में

देहरादून – उत्तराखंड में भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों के लिए पिछले 5 वर्ष का दौर बेहद ही मुश्किल भरा रहा है। राज्य में रिटायर होने वाले 11 ऑल इंडिया सर्विस अफसरों की पेंशन आज भी विवादों व जांचों के चलते अटकी ही हुई है। देशभर में यह एकमात्र राज्य माना जा रहा है, जहां इस स्तर पर अधिकारियों की पेंशन व्यवस्था इतने व्यापक स्तर पर बाधित भी हुई है।

2021 के बाद बढ़ी समस्याएं

वर्ष 2017 से पहले तक राज्य में IFS अधिकारियों पर किसी जांच या विवाद की कोई गंभीर मिसाल भी नहीं थी। लेकिन 2021 के बाद से रिटायर होने वाले कई वरिष्ठ अधिकारी अब भी विभिन्न जांचों या कानूनी प्रक्रियाओं का सामना भी कर रहे हैं। इसके कारण उन्हें नियमित पेंशन ही नहीं मिल पा रही है और कुछ को तो अंतरिम पेंशन पर गुजर-बसर भी करना पड़ रहा है।

कौन-कौन अधिकारी फंसे जांच में?

जिन सेवानिवृत्त IFS अधिकारियों को जांचों के कारण पेंशन में बाधा भी आ रही है, उनमें ये नाम प्रमुख हैं:

  • राजीव भरतरी (पूर्व PCCF हॉफ)
  • मान सिंह (पूर्व CCF)
  • अशोक गुप्ता (रिटायर्ड CF)
  • किशन चंद और अखिलेश तिवारी (रिटायर्ड DFO)
  • एच. के. सिंह (CF पद से सेवानिवृत्त)

इन सभी पर विभिन्न विभागीय जांचें भी चल रही हैं, जिसके कारण उनकी पेंशन पर निर्णय भी अटका हुआ है।

वेतनमान विवाद में उलझे कई अधिकारी

इसके अलावा कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो वेतनमान से अधिक पेंशन लेने के दावे को लेकर कोर्ट की शरण में भी हैं। राज्य सरकार ने इन्हें 7600 ग्रेड पे पर पेंशन दी है, जबकि अधिकारी 8900 ग्रेड पे के हकदार होने का दावा भी कर रहे हैं।

इनमें ये अधिकारी शामिल हैं:

  • खुशाल सिंह रावत, वीके सिंह, इंदर सिंह नेगी, मुकेश कुमार, बलदेव सिंह (DFO स्तर)
  • शिवराम सिंह, रविकांत मिश्रा (उपनिदेशक स्तर)

लंबी जांचें बनी रुकावट

वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि,

“जांच पूरी होने में समय लगता है, लेकिन हमारा प्रयास है कि इन्हें जल्द से जल्द पूरा किया जाए ताकि पेंशन संबंधी दिक्कतें भी दूर हो सकें।”

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति भी विवादों से अछूती नहीं

विभाग के एक और IFS अधिकारी मनोज चंद्रन ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के लिए आवेदन भी दिया था और निर्धारित 3 माह पूरे होने के बाद सेवाएं देना बंद कर दी थीं। लेकिन उनके खिलाफ चल रहे एक प्रकरण के चलते न वेतन स्पष्ट है, न ही पेंशन तय। मामले की जांच अधर में ही लटकी है।