
उत्तराखंड में सड़क हादसों से बढ़ रही मौतें, हाईवे पर ट्रॉमा सेंटर की मांग फिर तेज
देहरादून : उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार ही बढ़ रहा है, और इसके साथ ही इन हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या भी चिंता का विषय बन गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, हर वर्ष करीब 30 से 40 लोगों की मौत केवल इसलिए हो जाती है क्योंकि उन्हें समय पर इलाज ही नहीं मिल पाता।
गोल्डन आवर की अहमियत
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि “गोल्डन आवर”, यानी दुर्घटना के बाद का पहला घंटा, घायल की जान बचाने के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण भी होता है। यदि इस समय के भीतर प्राथमिक इलाज मिल जाए, तो मृत्युदर में भारी कमी भी लाई जा सकती है।
हाईवे पर ट्रॉमा सेंटर की जरूरत
सड़क हादसों में समय पर उपचार के लिए केंद्र सरकार ने पहले ही सभी राज्यों को हाईवे किनारे हर 100 किलोमीटर पर ट्रॉमा सेंटर बनाने के निर्देश भी दिए थे। उत्तराखंड में भी ट्रॉमा सेंटर तो बनाए गए, लेकिन अधिकतर जिला अस्पतालों में, जो हाईवे से काफी ही दूरी पर स्थित हैं।
अब राज्य स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति ने स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखकर फिर से हाईवे किनारे ट्रॉमा सेंटर स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर भी दिया है।
अब तक क्या हुआ?
शुरुआती वर्षों में स्वास्थ्य विभाग ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित केंद्रीय सड़क सुरक्षा समिति के निर्देशों पर खास ध्यान ही नहीं दिया। जब समिति ने सख्ती दिखाई, तो सभी जिला अस्पतालों को ट्रॉमा सेंटर के रूप में चिह्नित भी कर दिया गया। लेकिन ये अधिकतर सेंटर हाईवे से दूर हैं, जिससे दुर्घटना पीड़ितों को समय पर इलाज ही नहीं मिल पाता।
अब सड़क सुरक्षा समिति ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हाईवे किनारे ही ट्रॉमा सेंटर विकसित किए जाएं, ताकि घायलों को “गोल्डन आवर” में इलाज भी मिल सके और अनावश्यक मौतों को रोका भी जा सके।