
दर्दनाक सच्चाई: ममता और त्याग की मिसाल, फिर भी मां अकेली, वृद्धाश्रम की चौखट पर थम गईं उसकी उम्मीदें
वृद्धाश्रम में जीवन की सच्चाई—मां और परिवार के दर्दनाक कहानी
त्याग व ममता की मूरत, वह मां जिसने अपने बच्चों और परिवार के लिए अपनी सारी खुशियाँ ही कुर्बान कर दीं, आज वही मां अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार भी हो रही है। अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपनी खुशियों का बलिदान करने वाली, उन्हें सही से पालने के लिए दिन-रात मेहनत करने वाली मां, जो कभी भूखी रही लेकिन अपने बच्चों को भूखा नहीं सोने देती थी, आज उसी मां को न तो कोई पूछने वाला है और न ही सहारा देने वाला भी है । वृद्धावस्था में जब उन्हें सबसे ज्यादा अपने बच्चों से सहारे की उम्मीद थी, तो उनकी आँखें बस खाली ही रह गईं। इस दर्दनाक स्थिति का सामना कर रही हैं कई महिलाएं, जो वृद्धाश्रम में रहकर ही जीने को मजबूर भी हैं। महिला दिवस पर उनकी एक मात्र उम्मीद यही है कि कोई उनकी सुध ले और उनकी मदद भी करे।
केस-1 : बेटे का सवाल: मां, क्या तुम्हारी रहने की व्यवस्था हो गई है?
49 वर्षीय महिला, जिनका नाम जगजीत कौर है, उनको कभी यह नहीं लगा था कि उनका बेटा उन्हें इस तरह धोखा भी देगा। दिल्ली में शादी करने के बाद उनका जीवन अच्छा चल रहा था, लेकिन कुछ सालों बाद उनके पति को ब्रेन हेमरेज हुआ और वे बेटे के साथ रुद्रपुर में किराए के मकान में रहने लगे। एक दिन, उनका 24 वर्षीय बेटा अचानक उन्हें कहता है कि वे लोग दूसरी जगह जाएंगे व सामान पैक करने के लिए कहता है। मां ने सारे सामान पैक किए, लेकिन जब बेटे ने अहम सामान जैसे जेवर, नकदी आदि लेकर घर छोड़ा, तो वह वापस कभी नहीं लौटा। मां बस राह ताकती रही, लेकिन बेटे से कोई संपर्क ही नहीं हुआ। अंततः मकान मालिक ने उन्हें आश्रय सेवा समिति में छोड़ दिया। हाल ही में बेटे का फोन आया, लेकिन वह सिर्फ रस्म अदायगी कर रहा था। अब वह जानती है कि बेटा अगर मिलने भी आ जाए तो यह महज एक औपचारिकता ही होगी।
केस-2 : क्या पोता दादी के बारे में पूछता होगा?
यहां रहने वाली एक और महिला की कहानी और भी दर्दनाक है। उनकी शादी 12 साल की उम्र में ही हुई थी और पति की मौत 20 वर्ष की उम्र में हो गई थी। मायके वालों ने उन्हें छोड़ दिया, ससुरालवालों ने भी कोई संपर्क ही नहीं रखा। फिर भी उन्होंने खुद को संभाला और खेती-बाड़ी के दम पर एक बीघा जमीन खरीदी व बेटे की शादी कराई। वे चाहती थीं कि अब उनका जीवन आराम से बीते, लेकिन उनके बेटे ने एक दिन खराब आदतों के कारण उन्हें घर से ही निकाल दिया। पुलिस की मदद से उन्हें आश्रय सेवा समिति में भर्ती करवाया गया। इस महिला का मानना था कि शायद उनका बेटा कभी उन्हें याद करेगा, लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं। बेटे की मौत हो गई और बहू ने भी कभी उनकी खबर ही नहीं ली। अब उन्हें उम्मीद है कि शायद उनका 13 वर्षीय पोता कभी उन्हें मिलने आए, लेकिन यह भी बस एक उम्मीद ही बनकर रह गई है।
इस महिला दिवस पर इन वृद्धाश्रमों में रहने वाली महिलाओं की यही ख्वाहिश है कि कोई उनका हालचाल पूछे और उनके जीवन को थोड़ा आरामदेह भी बनाए।