उत्तराखंड से सागौन की हो रही विदाई, मिश्रित वन बनाएंगे जैव विविधता को समृद्ध

देहरादून | उत्तराखंड के जंगलों से अब सागौन की विदाई तय भी मानी जा रही है। वन विभाग ने तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, हल्द्वानी, रामनगर व नैनीताल जैसे क्षेत्रों में फैले सागौन के एकरूपी जंगलों को हटाकर मिश्रित वन तैयार करने की योजना पर भी तेजी से काम शुरू कर दिया है।

सागौन के स्थान पर लौटेगा प्राकृतिक जंगल

वन विभाग की वर्किंग प्लान में यह बदलाव भी शामिल कर लिया गया है, जिससे सागौन की कटाई भी तेज हो गई है। वन निगम के डिपो दो-तिहाई तक सागौन की लकड़ियों से भर चुके हैं। इसके स्थान पर हल्दू, जामुन, सेमल, साल व रोहिणी जैसे मिश्रित प्रजातियों के पेड़ लगाए जाएंगे, जो वन्यजीवों व पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल भी माने जाते हैं।

वन्य जीवन को मिलेगा नया जीवन

वन विशेषज्ञों के अनुसार, सागौन के घने और एकरूपी जंगल मधुमक्खियों, पक्षियों, हिरनों व हाथियों जैसे जीवों के लिए जीवित रहना मुश्किल भी बनाते हैं। इसकी पत्तियां न तो भोजन के योग्य होती हैं, न ही इसमें अन्य पौधे पनप पाते हैं। विशेषज्ञ श्रीकांत चंदोला कहते हैं, “जंगल का असली मतलब मिश्रित वन होता है। सागौन एक तरह से ‘वन खेत’ बन गया था – लगाओ और काटो।”

सागौन: आमदनी का जरिया, लेकिन जैव विविधता का संकट

हालांकि, सागौन राज्य की आय का बड़ा स्रोत रहा है। वर्ष 2020 से अब तक सागौन की नीलामी में सबसे अधिक आय हुई है:

वित्तीय वर्ष वन निगम की आय (₹ करोड़ में)
2020–21 87 करोड़
2021–22 240 करोड़
2022–23 274 करोड़
2023–24 191 करोड़
2024–25 213 करोड़
2025–26 (अब तक) 25 करोड़

लेकिन पर्यावरणीय नुकसान को देखते हुए अब सागौन हटाकर जैव विविधता को प्राथमिकता भी दी जा रही है।

डीएफओ तराई पूर्वी हिमांशु बागरी बताते हैं, “तराई में सागौन के जंगल हजारों हेक्टेयर में फैले हैं। अब इनकी जगह ऐसे पेड़ लगाए जाएंगे जिनकी पत्तियां वन्यजीवों को भोजन व ठिकाना देती हैं। इससे जानवरों की आवाजाही बढ़ेगी व जंगलों में पानी भी अधिक मिलेगा।”

पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी जताई थी चिंता

पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपनी किताब “मेरा जीवन लक्ष्य: उत्तराखंडियत” में भी सागौन के नुकसान का ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा:

“उत्तराखंड के जंगलों में दो दादा घुस आए हैं – चीड़ व सागौन। दोनों मिश्रित वनों के दुश्मन हैं। चीड़ ने बांज और बुरांस को नष्ट किया और सागौन ने आम, शीशम, खैर और आंवला को गायब कर दिया। अगर हम नहीं चेते तो उत्तराखंड के मिश्रित वन समाप्त हो जाएंगे।”

सागौन की विदाई उत्तराखंड के जंगलों के लिए एक नई शुरुआत भी साबित हो सकती है। यह कदम वन्य जीवन, जल स्रोतों व जलवायु संतुलन को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव भी माना जा रहा है।