केदारनाथ में मौसम पूर्वानुमान की चुनौती, डॉप्लर रेडार की अनिवार्यता और एक दशक की देरी
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले केदारनाथ में मौसम का सटीक पूर्वानुमान आज भी पहेली जैसा है। यहां कब बारिश व बर्फबारी हो जाए कुछ भी कहना मुश्किल है। जून 2013 की आपदा के बाद क्षेत्र में मौसम के सटीक पूर्वानुमान के लिए डॉप्लर रेडार लगाने के लिए शासन ने घोषणा तो की थी, लेकिन यह मामला निविदा से आगे नहीं बढ़ सका।
अगर, धाम में अर्ली वोर्मींग सिस्टम होता तो बीते दिनों आई आपदा से पूर्व ही सुरक्षा उपाय किए जा सकते थे, इससे हजारों लोगों की जान खतरे में नहीं पड़ती। समुद्रतल से 11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा संकरा घाटी क्षेत्र है। मेरु-सुमेरु पर्वत की तलहटी पर स्थित केदारनाथ मंदिर के दोनों तरफ मंदाकिनी व सरस्वती नदी बहती हैं।
केदारनाथ से चार किमी पीछे चोराबाड़ी व कंपेनियन ग्लेशियर हैं, जिस कारण यहां पल-पल में मौमस बदलता रहता है। यहां कब मूसलाधार बारिश आ जाए, कुछ कहना मुश्किल है। जून 2013 की आपदा का कारण भी मूसलाधार बारिश थी। जिससे चोराबाड़ी ताल तक बादल फट गया था और मंदाकिनी नदी में सामान्य दिनों की अपेक्षा हजारों क्यूसेक पानी बढ़ गया था, जो तबाही का कारण बना।
आपदा के बाद, शासन स्तर पर केदारनाथ में डॉप्लर रेडार लगाने की बात कही गई थी। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने डॉप्लर रेडार लगाने के लिए ग्लोबल स्तर पर निविदा प्रक्रिया की बात भी कही थी, लेकिन एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी केदारनाथ क्षेत्र में अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित नहीं हो सका।
वर्ष 2007-08 में वाडिया संस्थान देहरादून ने रामबाड़ा और चोराबाड़ी में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन टॉवर (एडब्ल्यूएस) स्थापित किए गए थे। इन टॉवर की मदद से क्षेत्र में होने वाली बारिश, बर्फबारी, मंदाकिनी नदी के जल प्रवाह, ग्लेशियर के पिघलने की गति, ग्लेशियर से पानी का स्राव के बारे में जानकारी मिलती थी। जून 2013 की आपदा में रामाबाड़ा में लगा एडब्लूएस ध्वस्त हो गया था। वहीं, चोराबाड़ी ताल के समीप लगा एडब्ल्यूएस वर्षों तक खराब ही पड़ा रहा, बाद में पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। वाडिया से सेवानिवृत्त ग्लेशियर विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि केदारनाथ क्षेत्र में मौसम के सटीक पूर्वानुमान को लेकर शासन स्तर पर ठोस कार्रवाई की जरूरत है।
जून 2013 की आपदा के बाद से केदारनाथ अति संवेदनशील श्रेणी में आ चुका है। यहां मंदाकिनी के साथ ही सरस्वती नदी के बहाव में तेजी आ चुकी है। इसलिए, जरूरी है कि शासन स्तर पर वहां डॉप्लर रेडार स्थापित किया जाए, जिससे मौसम से पूर्वानुमान की सही जानकारी मिल सके। ताकि किसी आपदा की स्थिति में सुरक्षा से जुड़े कार्यों के लिए पर्याप्त समय मिल सके।