शिव-पार्वती की विवाह स्थली त्रियुगीनारायण को तीर्थाटन डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया जाएगा।

शिव-पार्वती की विवाह स्थली त्रियुगीनारायण को तीर्थाटन डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया जाएगा। मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही यहां यात्री सुविधाएं भी जुटाई जाएंगी। मंदिर परिसर में मौजूद छोटे-छोटे मंदिर और अन्य धार्मिक धरोहरों का जीर्णोद्धार कर उन्हें संरक्षित किया जाएगा। इसके लिए श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने कार्ययोजना भी तैयार कर ली है।

रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से 83 किमी दूर त्रियुगीनारायण मंदिर का अपना एक विशेष ही महत्व है। इस मंदिर पर भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह हुआ था, जिसकी साक्षी यहां पर अखंड ज्योति है जो तीन युगों से अनवरत जल रही है। साथ ही इस देव विवाह के कई प्रमाण भी मंदिर में मौजूद हैं। इस साल 4.25 लाख से अधिक श्रद्धालु शिव-पार्वती विवाह स्थली त्रियुगीनारायण के दर्शन कर चुके हैं।

समिति प्राचीन मंदिर के साथ-साथ यहां अन्य छोटे-छोटे मंदिरों का जीर्णोद्धार कर उन्हें संरक्षित करेगी। मुख्य मंदिर की छतरी और झालर का पुनरोद्धार भी किया जाएगा। साथ ही छत की मरम्मत और इसके अलावा पुजारी निवास के साथ ही यहां मूलभूत सुविधाएं भी दुरुस्त की जाएंगी। मंदिर में यात्री सुविधाओं की बेहतरी के लिए भी काम होगा। मंदिर समिति के अनुसार, यात्राकाल के साथ ही अन्य समय में भी श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते रहे, इसे लेकर धार्मिक स्थल को विस्तार देकर सुविधाएं जुटाई जाएंगी।

त्रियुगीनारायण मंदिर में 7 कुंड हैं, जिसमें ब्रह्मकुंड, अमृत कुंड, सरस्वती कुंड, विष्णुकुंड, सूरज कुंड, नारद कुंड और रुद्रकुंड है। इन सभी 7 कुंड को भी संरक्षित किया जाएगा। खास बात है कि रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्मकुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। मान्यता है कि इस सरस्वती कुंड की स्थापना भगवान विष्णु ने अपनी नाभी से की थी। इस कुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है।

अध्यक्ष श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, अजेंद्र अजय ने कहा त्रियुगीनारायण मंदिर के संरक्षण और संवर्द्धन को लेकर कार्ययोजना तैयार की जा रही है और मंदिर की छतरी और झालर के पुनरोद्धार के साथ ही यहां अन्य कई कार्य भी किए जाने हैं। इसके लिए पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों का सहयोग भी लिया जाएगा। चरणबद्ध तरीके से अधीनस्थ अन्य मंदिरों का भी सौंदर्यीकरण कर उन्हें भी संरक्षित किया जाएगा।