देश के पहले गांव माणा के लोगों को पता ही नहीं क्यों किया यूसीसी से बाहर…सामने प्रतिक्रियाएं भी आई

विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पारित होने के बाद उत्तराखंड की देशभर में चर्चा भी हो रही है। साथ ही चर्चा यूसीसी से जनजातीय समुदाय को बाहर रखने को लेकर हो रही है। यह सवाल उत्तराखंड के जनजातीय समाज को मथ रहा है। यूसीसी के दायरे से बाहर होने के सवाल पर उनकी अलग-अलग प्रतिक्रिया भी है।

 

इस समुदाय के कई लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि उन्हें आखिर बाहर क्यों रखा गया है? कई लोगों का मानना है कि वे अपनी संस्कृति के कारण अपनी एक अलग ही पहचान रखते हैं। ऐसे में उन्हें इससे बाहर ही रखा जाना उचित है।

 

देश के पहले गांव माणा के पहले नागरिक (प्रधान) पीतांबर मोल्फा भी कहते हैं, यूसीसी लागू किए जाने से पहले सरकार के 2 सदस्य उनके गांव भी आए थे। उन्होंने लिव इन रिलेशनशिप और जनसंख्या नियंत्रण आदि कई मुद्दों पर भी हमारी राय ली। इनमें से कई नियम ऐसे हैं जिनका वे लोग पहले से ही पालन करते हैं। ऐसे में उन्हें यूसीसी से बाहर क्यों किया गया यह उनकी समझ से ही बाहर है।

 

जिला पंचायत अध्यक्ष और जौनसारी जनजाति से ताल्लुक रखने वाली मधु चौहान का कहना है कि उन्हें भारतीय संविधान द्वारा पहले ही इतने अधिकार भी दिए गए हैं कि उन्हें नहीं लगता कि कुछ और अधिकार दिए जाने की आवश्यकता भी है। वह बतातीं हैं कि हमारी संस्कृति में विशिष्ट है। जिसे संरक्षित रखना भी चाहते हैं। वह मानतीं हैं कि यूसीसी से जनजातियों को बाहर रखे जाने का सरकार का निर्णय भी उचित है।

 

पिथौरागढ़ निवासी और उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन की राज्य संचालन समिति के कार्यक्रम संयोजक जगत मर्ताेलिया कहते हैं, जनजातियां अपनी विशिष्ट संस्कृति के लिए भी जानी जाती हैं। जनजाति समाज के कई आंतरिक मामले और सामाजिक कार्य अन्य से अलग होते हैं। ऐसे में सरकार को उन्हें पूरी तरह से यूसीसी से बाहर रखना चाहिए। पीएम नरेंद्र मोदी जब माणा गांव गए थे, तो उन्होंने भी माना था कि जनजाति समुदाय के लोगों की संस्कृति अपने आप में विशिष्ट पहचान भी रखती है। उत्तरकाशी के डुंडा निवासी जाड़ समुदाय के सेवानिवृत्त शिक्षक सेवाराम भंडारी भी यूसीसी से बाहर रखे जाने के निर्णय को भी समझ नहीं पाए हैं।

 

राज्य में 5 प्रकार की जनजातियां हैं जिनमें जौनसारी, बोक्सा, राजी, भोटिया और थारू समुदाय शामिल हैं। चीन के साथ वर्ष 1962 की लड़ाई के बाद वर्ष 1967 में इनको संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत जनजाति समुदाय में शामिल करने के लिए अधिसूचित भी किया गया।

 

भारत के संविधान के भाग 21 व अनुच्छेद 366 के खंड (25) में जनजातीय सदस्यों के परंपरागत अधिकार भी संरक्षित हैं। विशेषज्ञ समिति को जन संवाद के दौरान जनजातीय समूहों ने यह इच्छा जाहिर की कि वे अपने यहां कुरीतियों को समाप्त करने के पक्षधर भी हैं। लेकिन उन्हें आपसी सहमति बनाने के लिए कुछ अधिक समय की आवश्यकता भी है।