जर्मनी की संसद में पहली बार गूंजा गायत्री महामंत्र — डॉ. चिन्मय पंड्या ने विश्व मंच पर किया भारत का प्रतिनिधित्व

जर्मनी की ऐतिहासिक संसद में पहली बार गायत्री महामंत्र की गूंज भी सुनाई दी। यह ऐतिहासिक पल भारत के लिए गर्व का क्षण ही बन गया। दरअसल, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रतिकुलपति डा. चिन्मय पंड्या यूरोप यात्रा पर हैं, जहां वे भारतीय संस्कृति व अध्यात्म का संदेश विश्व मंचों तक पहुँचा भी रहे हैं।

अपने प्रवास के दौरान डॉ. पंड्या ने जर्मनी के फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट में आयोजित “पीस एंड लीडरशिप कॉन्क्लेव” में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। इसी कार्यक्रम के दौरान पहली बार इस सदन में गायत्री महामंत्र का उच्चारण भी हुआ, जिसकी पवित्र ध्वनि ने पूरे सभागार को आध्यात्मिक ऊर्जा से ही भर दिया।

यह वही ऐतिहासिक संसद है जिसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में ही हुई थी। गायत्री महामंत्र की गूंज के साथ वहाँ उपस्थित प्रतिनिधियों ने भारतीय संस्कृति की गहराई व सार्वभौमिकता को महसूस किया। कई विदेशी प्रतिनिधियों ने इस क्षण को “आध्यात्मिक रूप से प्रेरणादायक व अद्भुत अनुभव” बताया।

इस कार्यक्रम को जर्मनी के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने भी विशेष रूप से प्रकाशित भी किया है। समाचार पत्रों ने लिखा — “इतिहास में पहली बार जर्मन संसद में भारतीय मंत्रों की गूंज सुनाई दी, जिसने माहौल को शांति व सकारात्मकता से भर दिया।”

इस अवसर पर डॉ. चिन्मय पंड्या ने भारतीय संस्कृति के मूल तत्व — यज्ञ, तप, सेवा व सद्भाव — को विश्व शांति और नेतृत्व के लिए समाधान के रूप में प्रस्तुत भी किया। उन्होंने कहा कि आज जब विश्व युद्ध, जलवायु संकट व मानसिक तनाव जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब भारत का शाश्वत सिद्धांत ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पूरा विश्व एक परिवार है) ही वैश्विक एकता की सच्ची दिशा भी दिखाता है।

डा. पंड्या ने यह भी घोषणा की कि साल 2026 में माता भगवती देवी शर्मा व दिव्य अखंड दीप के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में वैश्विक एकता, आत्म-परिवर्तन व आध्यात्मिक नवजागरण पर केंद्रित भव्य अंतरराष्ट्रीय आयोजन भी किए जाएंगे।

 

यह क्षण न केवल भारत की संस्कृति व अध्यात्म की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक बना, बल्कि यह संदेश भी दे गया कि विश्व शांति का मार्ग भारतीय विचारधारा से होकर ही गुजरता है।