बागेश्वर : उत्तराखंड में भी होगी अमेश की व्यावसायिक खेती, कई स्वास्थ्य लाभों से भरपूर; याददाश्त बढ़ाने में है प्रभावी

हिमाचल, जम्मू और कश्मीर के बाद अब प्रदेश में आमेश की व्यावसायिक खेती शुरू करने की योजना है। वन विभाग का वानिकी अनुसंधान संस्थान प्रदेशभर के हिमालयी क्षेत्रों में किसानों को अमेश की खेती के लिए प्रशिक्षित भी कर रहा है। करीब 700 किसानों को अब तक प्रशिक्षित भी किया जा चुका है। संस्थान की मार्च माह से हिमालयी क्षेत्रों में बीजरोपण व पौधरोपण कर खेती की शुरुआत करने की योजना है। अमेश काफी गुणकारी भी होता है। इसमें सभी तरह के विटामिन भी पाए जाते हैं। यह फल याददाश्त बढ़ाने में भी कारगर है। क्ति है। सबसे खास बात यह है कि इसका जूस माइनस 29 डिग्री सेल्सियस में नहीं जमता। ठंडे स्थानों में इसका जूस काफी उपयोगी भी होता है।

स्थानीय लोग इसे चूक कहते हैं

अमेश को स्थानीय भाषा में चूक भी कहा जाता है। 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होने वाले औषधीय झाड़ी प्रजाति के इस फल का वानस्पतिक नाम हिपोफी सालिसोफोलिया भी है। इसे सीबक्थोर्न नाम से जाना जाता है। जंगली बेर के समान दिखने वाला यह फल स्वाद में हल्का सा खट्टा होता है। इसमें अप्रैल माह से मई माह तक फूल आते हैं। अक्तूबर माह से मार्च माह के बीच इसके फल तैयार हो जाते हैं। पकने के बाद यह फल नारंगी भी हो जाता है। अमेश में विटामिन सी, ई व विटामिन बी वन से बी सिक्स प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें कैंसररोधी गुण भी होते हैं। यह स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला होता है। आयुर्वेदिक दवाइयों में इसका उपयोग भी होता है। इसकी चटनी, जूस, कैंडी और चॉकलेट भी तैयार किए जाते हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग चाय में भी किया जाता है।

हिमाचल और जम्मू ले जाया जाएगा किसानों को

वानिकी अनुसंधान संस्थान हल्द्वानी के कॉर्डिनेटर बलवंत सिंह शाही ने बताया कि प्रदेश के उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और बागेश्वर आदि जिलों में 16 स्थानों पर किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। कार्य शुरू होने के बाद किसानों को हिमाचल व जम्मू कश्मीर में हो रही खेती देखने के लिए विजिट कराया जाएगा। अमेश हिमालयी क्षेत्रों में नदी और नालों के किनारे होने वाला फल है। प्रदेश के हिमालय से सटे इलाकों में यह फल पाया भी जाता है। इसके फल की बाजार में कीमत 500 रुपये प्रति किलो से 1000 रुपये प्रति किलो है। चीन में इसका काफी उत्पादन भी होता है। वहां इसका सालाना टर्नओवर 300 करोड़ रुपये है।

पिंडर घाटी और बिचला दानपुर में होगी खेती

रेंजर श्याम सिंह करायत ने बताया कि जिले की पिंडर घाटी के गांव खाती, वाछम, कुंवारी, बोरबलड़ा, सरयू घाटी के झूनी, खलझूनी व बिचला दानपुर के कीमू, गोगिना आदि गांवों की जलवायु अमेश की खेती के लिए उपयुक्त भी है। जिले के इन क्षेत्रों में किसानों को अमेश की व्यावसायिक खेती के लिए तैयार भी किया जाएगा।

कोट-प्रदेश में अमेश की व्यावसायिक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है। सभी हिमालयी क्षेत्रों के किसानों को प्रशिक्षण देकर मार्च माह से कार्य शुरू करने की योजना है। -संजीव चतुर्वेदी, मुख्य वन संरक्षक कार्ययोजना/वानिकी अनुसंधान संस्थान हल्द्वानी