184 वर्ष पुराना इतिहास: नैनीताल की खोज का श्रेय सिर्फ पीटर बैरन को नहीं, सदियों पहले ही मौजूद थे विस्तृत लिखित प्रमाण
नैनीताल। 18 नवंबर 1841 को पीटर बैरन द्वारा की गई नैनीताल की खोज का वर्षों से उल्लेख भी किया जाता रहा है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों से स्पष्ट है कि नैनीताल की पहचान सदियों पहले से ही मौजूद भी थी। लगभग 8वीं शताब्दी में लिखित स्कंदपुराण के मानसखंड में कुमाऊं क्षेत्र, पर्वतों, नदियों व झीलों का इतना विस्तृत वर्णन मिलता है कि यह आज के “गूगल मैप” जैसा प्रतीत होता भी है। इनमें नैनीताल क्षेत्र के 7 प्राचीन सरोवरों—त्रिषि (नैनीताल), नवकोण (नौकुचियाताल), दमन्ती (दमयंतीताल), सीतासरोवर (सीताताल), भीमहृद, नलहृद व रामहृद—का उल्लेख विस्तार से है।
मानसखंड में एक घने जंगल के बीच एक सरोवर व उससे जुड़े महेंद्र परमेश्वरी देवी मंदिर का वर्णन भी मिलता भी है, जो वर्तमान नैनी झील व नयना देवी मंदिर से मेल भी खाता है।
इतिहासकार बताते हैं कि स्वयं पीटर बैरन ने भी माना था कि यह क्षेत्र उनसे बहुत पहले से स्थानीय लोगों के लिए जाना-पहचाना भी था। उन्हें यहां की पहाड़ियों के स्थानीय नाम पहले से प्रचलित मिले और एक स्थानीय व्यक्ति ही उन्हें पहली बार नैनीताल तक लेकर भी गया। पहली यात्रा में बैरन को बाजारस्थल के मध्य एक विशाल झूला मिला, जैसा प्राचीन कुमाऊं मंदिरों में देखने को भी मिलता है। उन्होंने यहां प्रतिवर्ष लगने वाले मेले का भी उल्लेख भी किया है।
1843 की अपनी तीसरी यात्रा में बैरन ने लिखा कि झील व आस-पास के जंगल टिड्डियों के विशाल झुंड से ढक भी गए थे, जिन्हें भालू खा रहे थे। स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया कि ऐसा झुंड 15–20 वर्ष पहले भी आया था—यह स्पष्ट संकेत है कि लोग प्राचीन समय से ही इस क्षेत्र में आते भी रहे थे।
हालांकि नैनीताल को आधुनिक विश्व के नक्शे पर लाने का श्रेय निस्संदेह पीटर बैरन को भी दिया जाता है, लेकिन ऐतिहासिक ग्रंथ और स्थानीय परंपराएं इस बात का प्रमाण हैं कि नैनीताल का अस्तित्व व महत्व सदियों पुराना है।