
65 वर्ष की उम्र में 35 साल की बीमा पॉलिसी देने का क्या औचित्य? आयोग ने उठाया सवाल, कंपनी को दी चेतावनी
65 साल के बुजुर्ग को 35 सालों के लिए बीमा पॉलिसी देना न्यायसंगत नहीं: राज्य उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को सिखाया कानून का पाठ
देहरादून: राज्य उपभोक्ता आयोग ने एक बीमा कंपनी को उपभोक्ता कानून और व्यवहारिकता का पाठ भी पढ़ाया है, जब उसने 65 वर्ष के बुजुर्ग को 35 सालों के लिए बीमा पॉलिसी देने का निर्णय भी लिया। आयोग ने बीमा कंपनी को उपभोक्ता की हक में फैसला सुनाते हुए सेवा में कोताही का दोषी भी ठहराया।
यह मामला ऊधमसिंह नगर निवासी कृष्ण लाल अरोड़ा का है, जिन्होंने अगस्त 2007 में मेटलाइफ इंडिया इंश्योरेंस से 65 वर्ष की उम्र में बीमा पॉलिसी भी ली थी। उन्होंने 5 वर्ष तक मासिक प्रीमियम चुकता करके कुल सवा लाख रुपये जमा किए। जब 75 वर्ष की उम्र में उन्हें पैसों की आवश्यकता पड़ी, तो उन्होंने पॉलिसी को सरेंडर कर दिया और जमा रकम वापस मांगी। लेकिन बीमा कंपनी ने उन्हें सिर्फ 24,000 रुपये लौटाने की बात ही कही, जबकि कंपनी का कहना था कि उपभोक्ता ने 35 वर्ष की पॉलिसी का करार किया था, और समय से पहले सरेंडर करने पर रकम में कटौती भी की गई।
मामले में पहले जिला उपभोक्ता आयोग ने 15 नवंबर 2018 को फैसला दिया था कि बीमा कंपनी और उपभोक्ता आपसी संविदा के तहत बंधे हैं, और इसलिए कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता। लेकिन अब, राज्य उपभोक्ता आयोग की अध्यक्ष कुमकुम रानी और सदस्य चंद्रमोहन सिंह की पीठ ने जिला आयोग के फैसले को रद्द करते हुए बीमा कंपनी को दोषी भी ठहराया।
राज्य आयोग ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी बुजुर्ग कृष्ण लाल अरोड़ा को सवा लाख रुपये, शिकायत दर्ज कर ने की तिथि (8 मई 2018) से लेकर वास्तविक प्राप्ति तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज और मुकदमेबाजी खर्च के रूप में 25,000 रुपये भुगतान भी करेगी।