समान नागरिक संहिता से उत्तराखंड की जनजातियां भी अलग रह सकती हैं।

समान नागरिक संहिता से उत्तराखंड की जनजातियां भी अलग रह सकती हैं। प्रदेश में 7 प्रमुख जनजातियां हैं, जिनके तौर तरीके और नियम अलग ही हैं। हालांकि, अभी भी सरकार को इस पर फैसला लेना है। समान नागरिक संहिता वैसे तो प्रदेश के हर नागरिक पर लागू करने का भी लक्ष्य है, लेकिन अनुसूचित जनजातियों को इससे बाहर ही रखा जा सकता है।

अभी सरकार को इस पर फैसला भी लेना है। प्रदेश में थारू जनजाति उत्तराखंड और कुमाऊं का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय भी है। थारू जनजाति ऊधमसिंह नगर के खटीमा, नानकमत्ता, सितारगंज और किच्छा आदि क्षेत्रों में निवास भी करती हैं।

इसके बाद जौनसारी राज्य की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति भी है, जो मुख्य रूप से भाबर क्षेत्र और देहरादून के चकराता, कालसी, त्यूनी, लाखामंडल क्षेत्र, टिहरी का जौनपुर व उत्तरकाशी के परग नेकान क्षेत्र में निवास करते हैं। वहीं, भोटिया जनजाति प्रदेश की सबसे प्राचीन भी मानी जाती है।

भोटिया जनजाति की बहुत सी उपजातियां मारछा, तोलछा, जोहारी, शौका, दरमियां, चौंदासी, व्यासी, जाड़, जेठरा, छापड़ा (बखरिया) भोटिया जनजाति महा हिमालय के तलहटी क्षेत्रों में निवास भी करती हैं। यह जाति पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी में निवास करती है। उधर, बोक्सा जनजाति के लोग राज्य के तराई-भाबर क्षेत्र में ऊधमसिंहनगर के बाजपुर, गदरपुर और काशीपुर, नैनीताल के रामनगर, पौड़ी के दुगड्डा और देहरादून के विकासनगर, डोईवाला और सहसपुर विकासखंडों के 173 गांवों में निवास करते हैं।

नैनीताल और उधमसिंहनगर के बोक्सा बहुल क्षेत्र को बुक्सा कहा जाता है, जबकि राजी जनजाति प्रदेश की एकमात्र ऐसी है, जो आज भी जंगलों में निवास करती है। मुख्यतः पिथौरागढ़ जिले में ही रहती है। थारू, बोक्सा, जौनसारी, भोटिया और राजी जनजातियों को 1967 के अनुसूचित जाति के अंतर्गत ही रखा गया है। इन जनजातियों के अपने अलग रीति रिवाज भी हैं। अलग नियम भी हैं।