भीमताल में नरभक्षी के हमले से 3 लोगों की जान जाने के मामले में हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान वाली याचिका को निस्तारित कर दिया है I

भीमताल में नरभक्षी के हमले से 3 लोगों की जान जाने के मामले में हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान वाली याचिका को निस्तारित कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई जानवर इंसान पर जानलेवा हमला करता है तो अपनी आत्मरक्षा के लिए उसे मारा जा सकता है। यदि घटना घट चुकी है तो उस स्थिति में जानवर को चिह्नित किया जाना जरूरी है जिससे निर्दोष जानवर न मारे जाएं। कोर्ट ने ये निर्देश भी दिए कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा (11-ए) का पालन किया जाए। इसके तहत मारने से पहले आदमखोर को चिह्नित कर पकड़ा जाए। बाद में उसे ट्रेंक्यूलाइज किया जाए। यदि वह पकड़ में नहीं आता है तो उसे मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति ली जाए। न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के आदेश का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की। कोर्ट ने वन अधिकारियों से नरभक्षी को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली, लेकिन वे इसका संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने कहा कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13ए में खूंखार हमलावर जानवर को मारने की अनुमति दी जाती है। उन्होंने इसे पकड़ने और पहचान करने के लिए 5 पिंजरे और 36 कैमरे लगा रखे थे। इस पर न्यायालय ने उनसे पूछा कि तेंदुआ था या बाघ था। उसे मारने के बजाय रेस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए।

 

कोर्ट ने कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है न कि किसी नेता के आंदोलन की। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा (11ए) के तहत तीन परिस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं। पहले उसे खदेड़ा जाएगा, फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रेस्क्यू सेंटर में रखा जाएगा और अंत मे मारने जैसा अंतिम कठोर कदम उठाया जा सकता है लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए। उन्हें यहीं पता नहीं कि बाघ है या तेंदुआ, उसकी पहचान भी नहीं हुई। सरकार की ओर से कहा गया कि आदमखोर बाघिन थी। उसे ट्रैंक्यूलाइज कर लिया है। इसकी फॉरेंसिक रिपोर्ट अभी नहीं आई है।