छोटे राज्य का बड़ा फैसला…बीजेपी शासित राज्यों के लिए उत्तराखंड बन सकता है नजीर

दशकों से एक बड़ा वर्ग देश में एक समान कानून लागू करने की वकालत भी कर रहा है। केंद्र व राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी वर्षों से देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का अवसर भी देख रही है। ऐसे में छोटे से राज्य उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने का भी बड़ा फैसला ले लिया है। उसके इस फैसले पर देश व दुनिया की निगाह भी है।

जानकारों का मानना है कि यह फैसला सामाजिक कुरुतियों से त्रस्त वर्गों को राहत देने का काम भी तो करेगा ही, साथ ही कुप्रथाओं से उलझे सामाजिक ताने-बाने में भी उम्मीद के नए रंग भी भरेगा। वहीं, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूसीसी लागू करने के लिए बनाई गई ड्राफ्ट रिपोर्ट सीएम को सौंपे जाने के अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं।

धामी सरकार की यह कवायद उन लाखों पार्टी समर्थकों और देश में एक समान कानून के हिमायतियों की वैचारिक खुराक भी बनी है, जिसका वे लंबे समय से इंतजार भी कर रहे हैं। उत्तराखंड में यूसीसी के इस लिटमस टेस्ट पर देश के उन सभी राज्यों की नजर भी है, जहां बीजेपी और उसके समर्थन से सरकारें चल रही हैं। इन सभी राज्यों के लिए उत्तराखंड का यूसीसी मॉडल भी हो सकता है, हालांकि यह कितना आदर्श मॉडल बन पाएगा, इसे बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व बहुत गहराई से मॉनिटर भी कर रहा है।

पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, यूसीसी की विशेषज्ञ समिति के गठन से लेकर इसकी ड्राफ्ट रिपोर्ट भी तैयार करने और इसे सौंपे जाने तक हर पड़ाव केंद्रीय नेतृत्व की निगाह से ही गुजरा है। अब वह यह देखेगा कि सरकार इसे किस कुशलता के साथ भी लागू करती है। जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड में खुली इस खिड़की से निकलने वाली यूसीसी की हवा दूसरे राज्यों में तभी अपना असर छोड़ेगी, जब यह उत्तराखंड में अपना रंग दिखाएगी। धामी सरकार के लिए यूसीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट बनाने के साथ इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की अगली चुनौती भी है।

ड्राफ्ट रिपोर्ट के संबंध में जो सूचनाएं अब तक बाहर आई हैं, वे महिलाओं व बेटियों की राहत पर ज्यादा केंद्रित हैं। मिसाल के तौर पर बेटियों को उत्तराधिकार, विरासत, संपत्ति में बराबरी का हक, तलाक के लिए कुलिंग पीरियड समान, बहु विवाह पर रोक व अनिवार्य विवाह पंजीकरण जैसे प्रावधान कहीं न कहीं महिलाओं व बेटियों के हित में खड़े भी नजर आते हैं।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दशकों से देश में एक समान कानून बनाए जाने की चर्चाएं भी होती रही हैं। राजनीतिक, सामाजिक व कानूनी तौर पर ये बातें अलग-अलग मंचों से भी उठती रही हैं। न्यायालयों में जनहित याचिकाओं के माध्यम से इसे लागू करने की पैरोकारी हुई, ये सारा तबका राज्य में यूसीसी लागू करने से राहत भी महसूस करेगा।