एक समय में ग्रामीण महिलाएं घूंघट उठाकर मायावती की एक झलक देखना चाहती थीं, हारने के बावजूद भी बनाई अपनी अलग ही पहचान

हरिद्वार लोकसभा सीट से कई दिग्गज नेता भी चुनाव लड़ चुके हैं। अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत में बसपा सुप्रीमो मायावती हरिद्वार सीट से चुनाव मैदान में भी उतरीं थीं। तब गांवों में युवा महिला नेत्री को देखने के लिए महिलाओं की भीड़ भी जुटती थी।

 

ग्रामीण महिलाएं घूंघट उठाकर मायावती की एक झलक देखने के लिए भी लालायित रहती थी। वैसे तो मायावती चुनाव हार गई थीं, लेकिन एक नेता के तौर पर उनकी अपनी एक अलग ही पहचान बन गई थी। साल 1987 में लोकसभा का उपचुनाव हुआ था। तब हरिद्वार अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित भी थी। कांशीराम की पार्टी बहुजन समाज पार्टी से मायावती हरिद्वार से उम्मीदवार भी बनाई गई थीं।

 

धनौरी निवासी ग्रामीण मांगेराम बताते हैं कि तब मायावती को अधिकतर लोग जानते ही नहीं थे, लेकिन चुनाव में मायावती सबसे बड़ा आकर्षण बनकर भी उभरी थीं। गांव-गांव तक यह खबर फैल गई थी कि अनुसूचित जाति की एक युवा महिला नेता अब हरिद्वार से चुनाव लड़ रही हैं। महिलाओं के बीच मायावती को देखने का एक खास ही क्रेज था। मायावती जब गांव में प्रचार के लिए आई थीं तो महिलाएं छतों पर खड़ी होकर उन्हें देखती भी थीं।

 

गांव में घूंघट निकाले महिलाएं अपना घूंघट ऊपर उठाकर मायावती की झलक देखने को लालायित भी रहती थीं। कोटामुराद नगर गांव निवासी इसम सैनी ने बताया, तब मायावती के साथ कोई भी काफिला नहीं चलता था। कई बार तो वे किसी दूसरे कार्यकर्ता की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर ही गांव में प्रचार के लिए भी आती थीं। गली मोहल्ले में जा-जाकर लोगों से वोट की अपील करती थीं।

 

ग्रामीण सुरेंद्र बताते हैं कि उस समय गांवों की चौपाल पर मायावती की ही चर्चाएं चला करती थीं। कैसे एक युवा महिला बाहर से आकर हरिद्वार में चुनाव भी लड़ रही है, इसको लोगों ने खूब भी सराहा था। हरिद्वार जिले के लोगों ने इस उपचुनाव से ही मायावती को जाना और पहचाना भी था।