उत्तराखंड: जुलाई में संभावित पंचायत चुनाव, बरसात बना बड़ी चुनौती
देहरादून – उत्तराखंड में लंबे समय से लंबित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अब अगले माह जुलाई में कराए जाने की तैयारी जोरों पर है। शासन ने इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी है और पंचायतीराज विभाग के साथ-साथ राज्य निर्वाचन आयोग भी चुनावी तैयारियों में जुट गया है। हालांकि, मानसून के बीच चुनाव कराना प्रशासन व आयोग दोनों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
राज्य के कई पर्वतीय जिले हर वर्ष बरसात में आपदा संभावित क्षेत्रों में बदल जाते हैं। इस दौरान नदी-नालों व गधेरों के उफान पर रहने से कई इलाकों में संपर्क मार्ग बाधित हो जाते हैं। ऐसे में ना केवल मतदान कर्मियों की तैनाती मुश्किल होगी, बल्कि मतदान प्रतिशत में गिरावट भी तय मानी जा रही है।
2024 में खत्म हुआ कार्यकाल, दो बार प्रशासकों की नियुक्ति
उत्तराखंड की ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों का कार्यकाल वर्ष 2024 में समाप्त हो गया था। लेकिन तब से लेकर अब तक चुनाव नहीं हो पाने के चलते सरकार को दो बार प्रशासक नियुक्त करने पड़े। पहले निवर्तमान पंचायत प्रतिनिधियों को और फिर प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशासक भी बनाया गया।
अब सरकार ज्यादा समय तक चुनाव को टालने के मूड में नहीं है। आरक्षण निर्धारण की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद शासन ने जुलाई में चुनाव प्रस्तावित किए हैं, जिससे यह तय हो गया है कि जल्द ही आचार संहिता भी लागू की जा सकती है।
बरसात में पहली बार होंगे पंचायत चुनाव?
स्थानीय जनप्रतिनिधियों का मानना है कि यदि पंचायत चुनाव जुलाई में हुए, तो यह राज्य गठन के बाद पहली बार होगा जब बरसात के बीच चुनाव भी कराए जाएंगे। इससे न केवल मतदाता उत्साह प्रभावित होगा, बल्कि सुरक्षा, लॉजिस्टिक्स व मतदान कर्मियों की तैनाती को लेकर भी प्रशासन को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
प्रदेश संयोजक पंचायत संगठन, जगत मार्तोलिया ने कहा,
“बरसात में पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जैसे जिलों में नदी-नालों के उफान और मलबा आने से कई बार आवाजाही ठप हो जाती है। ऐसे में मतदान प्रतिशत प्रभावित होना तय है।“
2019 में 69.59 फीसदी मतदान, अब स्थिति अलग
अक्टूबर 2019 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में 69.59 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसमें ऊधमसिंह नगर में सबसे अधिक 84.26 प्रतिशत व अल्मोड़ा में सबसे कम 60.04 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था।
पर्वतीय जिलों की बात करें तो आंकड़े और भी कम रहे:
- पौड़ी – 61.79%
- रुद्रप्रयाग – 62.98%
- टिहरी – 61.19%
चुनाव आयोग के लिए इन जिलों में मत प्रतिशत बढ़ाना पहले से ही चुनौती रहा है, जो मानसून में और कठिन हो सकता है।
चुनाव आयोग बना रहा रणनीति, जिलाधिकारियों से होगी चर्चा
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने कहा,
“बारिश के बावजूद चुनाव को बहुत अधिक समय तक टाला नहीं जा सकता। सभी पहलुओं पर विचार करते हुए, जिलाधिकारियों के साथ मिलकर कंटीजेंसी प्लान तैयार किया जाएगा।” उन्होंने संकेत दिए कि आपदा प्रबंधन और चुनाव संचालन के बीच तालमेल जरूरी होगा, ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो।
उत्तराखंड सरकार पंचायत चुनाव को लेकर प्रतिबद्ध नजर आ रही है, लेकिन मानसून की मार इसे चुनौतीपूर्ण बना सकती है। अब देखना यह होगा कि क्या चुनाव आयोग इस मौसम में भी सुचारू रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को संपन्न करा भी पाता है, या फिर चुनाव टालने की कोई नई रणनीति ही अपनाई जाएगी।