आसमान से बरसी आफत ने डुबोए किसानों के सपने — मंडियों में भीग रहा अन्नदाताओं का खून-पसीना
सितारगंज, किच्छा व गदरपुर की मंडियों में इन दिनों किसानों की मेहनत पर पानी ही फिर गया है। 6 महीने की लगन और कर्ज के बोझ तले बोई गई धान की फसल अब बारिश में सड़ रही है। अन्नदाता जो कभी आसमान से दुआ मांगते थे, अब उसी से रहम की गुहार भी लगा रहे हैं — “रहम करो भगवान, मुसीबत में हैं किसान।”
धान मंडी में तैर रहा, किसान की आंखों में आंसू
सितारगंज के दड़हाफार्म निवासी गुरसेवक सिंह की कहानी हजारों किसानों की पीड़ा बयां भी करती है। 9 एकड़ में धान बोई, कर्ज लेकर हर बूंद पानी की तरह मेहनत बहाई। लेकिन जब मंडी पहुंचे, तो बारदाना न मिलने से धान की तौल तक भी नहीं हो सकी।
अब फसल मंडी में बारिश में भीगकर नालियों में बह रही है। गुरसेवक कहते हैं — “अगर सिस्टम सुन लेता, तो बारिश कुछ भी नहीं बिगाड़ पाती।”
किच्छा में बह गए घर के सपने
ग्राम मलपुरा के माजिद ऐसा का सपना था कि इस बार की फसल से कर्ज चुकाकर एक छोटा सा घर भी बनाएंगे। 55 हजार एकड़ ठेके पर लेकर खेती की, ब्याज पर पैसे लेकर धान बोया। लेकिन मंडी में बारिश से उनकी पूरी उपज ही बह गई। माजिद कहते हैं — “जिस घर का सपना देखा था, वो भी अब पानी में ही बह गया।”
किसानों की मेहनत मंडी की नालियों में बह गई
नई मंडी सितारगंज में 400 क्विंटल से अधिक धान बारिश में खराब भी हो गया। किसान शमशेर सिंह व सुखविंदर सिंह ने बताया कि फसल में नमी बढ़ने से अब उन्हें उचित मूल्य ही नहीं मिल रहा।
आरएफसी लता मिश्रा ने मंडी का निरीक्षण कर दो क्रय केंद्र तुरंत खोलने और टोकन सिस्टम लागू करने के निर्देश भी दिए हैं, ताकि किसानों की फसल जल्द ही खरीदी जा सके।
गदरपुर और दिनेशपुर में खेतों में बिछी फसलें
गदरपुर क्षेत्र में तीन घंटे की मूसलाधार बारिश ने कहर भी बरपाया। किसानों की खड़ी फसलें खेतों में गिर गईं और जो कट चुकी थीं, वे मंडी में भीग गईं। किसान विजय गोलदार व प्रकाश मंडल कहते हैं — “एक-एक दाना पाला-पोसा था, अब हिम्मत ही टूट गई है।”
वैज्ञानिकों ने जताई नुकसान की आशंका
जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ. अजित सिंह नैन के अनुसार, खेतों में पानी भरने से धान में फफूंदी व सड़न का खतरा बढ़ गया है। इससे न सिर्फ उत्पादन घटेगा बल्कि बीज की गुणवत्ता भी खराब होगी।
सरकार से मुआवजे की मांग
तराई के किसान अब सरकार से नुकसान का मुआवजा व त्वरित खरीद की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सिस्टम ने समय पर कार्रवाई की होती तो उनकी फसलें न बचतीं, न ही सपने बहते।