“स्मार्ट सिटी दून” बना अतिक्रमण सिटी — फुटपाथों पर कब्जा, पैदल चलना हुआ मुश्किल!

देहरादून: स्मार्ट सिटी का सपना दून में फिलहाल कागजों तक ही सीमित है। शहर में सड़कों व फुटपाथों की हालत देखकर “स्मार्ट सिटी” की परिकल्पना खुद ही सवालों के घेरे में है। सड़कें अतिक्रमण से पटी हैं, तो फुटपाथ दुकानों, फड़-ठेलियों और रेहड़ियों के कब्जे में ही हैं। नतीजा यह है कि पैदल चलने वालों के लिए जगह नहीं बची और बाजारों में ट्रैफिक जाम तो अब आम बात ही हो गई है।

अब सुप्रीम कोर्ट ने देश के उन शहरों का रोड ऑडिट कराने के निर्देश दिए हैं, जिनकी आबादी 10 लाख से अधिक भी है। यह निर्देश पैदल यात्रियों व साइकिल सवारों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही दिए गए हैं। इससे उम्मीद जगी है कि शायद अब देहरादून में भी फुटपाथों को लेकर ठोस कार्रवाई भी होगी।

फुटपाथ पर ‘कब्जे का साम्राज्य’

नगर निगम देहरादून की जिम्मेदारी है कि वह सड़कों व फुटपाथों से अतिक्रमण हटाए, मगर अब तक कोई स्थायी कदम ही नहीं उठाया गया। कोर्ट के आदेश पर समय-समय पर अभियान तो जरूर चलाए जाते हैं, लेकिन अभियान खत्म होते ही फुटपाथ फिर से फेरीवालों और दुकानदारों के कब्जे में भी आ जाते हैं।

अप्रैल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि फुटपाथ पैदल चलने वालों के लिए हैं, न कि अतिक्रमण या ठेलों के लिए है। कोर्ट ने सभी राज्यों को “हॉकिंग नीति” बनाने के निर्देश भी दिए थे, ताकि रेहड़ी-पटरी वालों को वैकल्पिक व्यवस्था भी मिल सके।

प्रमुख बाजारों का बुरा हाल

पलटन बाजार, धामावाला व पीपल मंडी जैसे मुख्य बाजारों में फुटपाथ का नामोनिशान ही नहीं बचा है। घंटाघर से लक्खीबाग तक सिर्फ डेढ़ किलोमीटर के क्षेत्र में हर कदम पर अतिक्रमण ही नजर आता है। दुकानदार व फेरीवाले फुटपाथ पर कब्जा जमाए हुए हैं, जबकि नगर निगम दिखावे के लिए कुछ दिन अभियान चलाकर फिर चुप ही बैठ जाता है।

इसी तरह राजपुर रोड, सहारनपुर रोड, धर्मपुर, जीएमएस रोड, गांधी रोड व चकराता रोड — सभी इलाकों में फुटपाथ ‘बाजारों’ में तब्दील भी हो चुके हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि कई जगह फुटपाथों का बाकायदा सौदा भी होता है — दुकानदार फड़ लगाने वालों से जगह के पैसे भी वसूलते हैं।

न नीति बनी, न इच्छाशक्ति दिखी

3 साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने “हॉकिंग नीति” लागू करने का आदेश भी दिया था, लेकिन नगर निगम ने आज तक इसे लागू ही नहीं किया। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि जो दुकानदार दोबारा फुटपाथ पर कब्जा करें, उनकी बिजली-पानी की आपूर्ति तक काटी भी जा सकती है। मगर इन आदेशों का पालन अब तक नहीं हुआ।

अदालतों के आदेश बेअसर

2012 व 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने भी देहरादून में फुटपाथ खाली कराने के आदेश भी दिए थे। 2018 में तो कोर्ट ने इसके लिए एक कोर्ट कमिश्नर भी नियुक्त किया था। प्रशासन ने कुछ दिनों तक अभियान चलाया, लेकिन फिर सब पहले जैसा ही हो गया।

निचोड़ यह है कि स्मार्ट सिटी की राह पर दून अब भी ‘अतिक्रमण सिटी’ ही बना हुआ है। जब तक नगर निगम सख्ती नहीं दिखाएगा और अदालतों के आदेशों को अमल में नहीं लाएगा, तब तक दून का ‘स्मार्ट सिटी’ सपना सिर्फ दीवारों पर लगे होर्डिंग्स तक ही सीमित रहेगा।