भैया दूज पर यमुनोत्री धाम में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, शनिदेव की डोली पहुंची बहन यमुना से मिलने

उत्तरकाशी: विश्व प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम में भैया दूज पर्व के अवसर पर धार्मिक आस्था व परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिला। पर्वतीय परंपरा के अनुसार, सूर्यपुत्री मां यमुना को शनिदेव की बहन भी माना जाता है। इसी संबंध को प्रतीक स्वरूप खरसाली गांव से समेश्वर देवता (शनिदेव) की डोली हर वर्ष कपाट खुलने व बंद होने के समय यमुनोत्री धाम पहुंचती है।

मान्यता है कि भैया दूज के दिन स्वयं यमराज व शनिदेव अपनी बहन यमुना से मिलने यमुनोत्री धाम आते हैं। खरसाली गांव के ग्रामीण सदियों से इस अनोखी परंपरा का निर्वाह भी करते आ रहे हैं, जो आज भी उतनी ही श्रद्धा व उत्साह से निभाई जाती है।

पुराणों के अनुसार, भैया दूज के दिन मां यमुना ने अपने भाइयों यमराज व शनिदेव से यह वरदान मांगा था कि इस दिन जो भी श्रद्धालु यमुनोत्री धाम पहुंचकर पवित्र जल में स्नान, पान या पूजा-अर्चना करेगा, उसे यम यातनाओं से मुक्ति व शनि की साढ़ेसाती से राहत प्राप्त होगी। इसी पौराणिक विश्वास के चलते हर साल हजारों श्रद्धालु इस दिन यमुनोत्री धाम में दर्शन करने भी पहुंचते हैं।

बड़कोट से 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जानकीचट्टी तक मोटरमार्ग व वहां से लगभग 5 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई के बाद 3135 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम में इस वर्ष भी भैया दूज के मौके पर बड़ी संख्या में तीर्थयात्री भी पहुंचे।

यमुनोत्री मंदिर समिति के प्रवक्ता पुरुषोत्तम उनियाल ने बताया कि “भैया दूज के दिन जो भी श्रद्धालु मां यमुना की पूजा, अर्चना व स्नान करता है, उसे यम की यातनाओं और शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। इसका पुण्य न केवल श्रद्धालु को, बल्कि यमुना तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी प्राप्त होता है।”

भक्ति, आस्था व परंपरा से ओतप्रोत इस दिव्य पर्व ने यमुनोत्री धाम को एक बार फिर धार्मिक उल्लास से सराबोर भी कर दिया। शनि व यमुना के इस पवित्र मिलन को देखने और इसका पुण्य अर्जित करने के लिए श्रद्धालुओं में अपार उत्साह भी देखा गया।