मांगलिक कार्यों पर रोक, आज से शुरू हुआ 8 दिन का होलाष्टक, फागुनी होली की मस्ती का आगाज

होलाष्टक का आगमन, रंगों का त्यौहार और सामाजिक खुशियों की शुरुआत

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से 8 दिन चलने वाले होलाष्टक शुक्रवार से प्रारंभ हो गए हैं। इस दिन से विवाह जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा, और फागुनी होली की पारंपरिक मस्ती का सिलसिला शुरू हो जाएगा। हालांकि, अब शहरों में ढोलक की थाप पर होली के गीत गाने की परंपरा कम हो गई है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पुराने समय की मस्ती अभी भी कुछ हद तक जीवित है।

पतझड़ के मौसम में अचानक चली ठंडी हवाओं ने वसंत ऋतु की ताजगी को थोड़ी ठंडक दी है। इस वर्ष होलिका पूजन और दहन 13 मार्च की रात को ही होगा। होलिका पूजन पूरे दिन चलेगा। गंगा सभा के गंगा पंचांग के अनुसार, 13 मार्च को सुबह 10:41 बजे से रात 11:31 बजे तक भद्रा रहेगी, अतः होलिका दहन भद्रा के समाप्त होने के बाद ही किया जाएगा। वहीं, दुलहंडि, यानी फाग का रंगीला त्यौहार 14 मार्च को शुक्रवार को मनाया जाएगा। खास बात यह है कि इस दिन भगवान भास्कर मीन राशि में प्रवेश करेंगे, जिसके कारण मीन संक्रांति पर पूर्णिमा स्नान का आयोजन भी किया जाएगा।

होलाष्टक के दौरान शास्त्रों के अनुसार राहु, केतु, शनि, गुरु, शुक्र, मंगल जैसे ग्रह क्रूर हो जाते हैं, और साथ ही अघोर तंत्र शक्तियां जैसे डाकिनी, शाकिनी, पिशाचिनी जागृत हो जाती हैं। इसके साथ ही शिशिर से वसंत ऋतु में परिवर्तन होते ही उदासीनता और नकारात्मक तत्व भी सक्रिय हो जाते हैं, इसलिए इस समय मांगलिक कार्यों को निषिद्ध भी माना जाता है। इन नकारात्मक शक्तियों को शांत करने व धरती पर राग रंग की शुरुआत करने के लिए होलिका दहन के बाद रंगों और गुलाल के साथ खुशियाँ भी मनाई जाती हैं।

आजकल की व्यस्त जिंदगी और बदलती जीवन शैली ने होली और रंगों के पारंपरिक स्वरूप को बदल दिया है। एक वक्त था जब धर्मनगरी पंचपुरी की होली वसंत पंचमी से पांच दिन पहले ही शुरू भी हो जाती थी, और शहर की गलियों में होली की धूम मच जाती थी। ज्वालापुर और कनखल की गलियों में महिलाओं की टोली ढोलक बजाते हुए घर-घर महफिल सजाती थीं। होलाष्टक के समय शहरभर में एक उत्सव का माहौल बन जाता था, मानो पूरा शहर घरों से निकलकर गलियों में रंग-बिरंगे रंगों में रंगा भी होता था।