हाथरस सत्संग कांड का मुख्य आरोपी देवप्रकाश मधुकर का चौकाने वाले घुलासा

हाथरस सत्संग कांड का मुख्य आरोपी देवप्रकाश मधुकर अनुयायियों से सत्संग के लिए रकम जुटाता था। ग्रामीणों के अनुसार, इस हादसे से पहले उसने 20 से 27 लाख रुपये अनुयायियों से एकत्रित किए थे। ऐसी चर्चा देव प्रकाश के गांव व आसपास के लोगों में है।

बीते शुक्रवार को मुख्य आरोपी देवप्रकाश मधुकर के गांव सलेमपुर में अमर उजाला की टीम पहुंची। सामने आया कि पिता रामसिंह और मां बृह्मादेवी गांव में रहती हैं। जबकि बड़ा भाई अखिलेश कस्बा निधौली कलां में रहता था। देवप्रकाश सेवादार के रूप में भोले बाबा का खास सिपहसालार है। उसको सत्संग के नाम पर रकम जुटाने की भी जिम्मेदारी दी गई थी।

बताया गया है कि सलेमपुर व आसपास के गांव सहित सिकंदराराऊ क्षेत्र में उसने कई अनुयायी बनाए थे।

सेवादार देवप्रकाश मनरेगा में तकनीकी सहायक के पद पर ब्लॉक शीतलपुर में तैनात था। 20 गांवों का कार्य देख रहा था। वह एक जुलाई से बिना बताए अनुपस्थित चल रहा है।

सिकंदराराऊ हादसे का मुख्य आरोपी देवप्रकाश मधुकर एटा जिले में मनरेगा में तकनीकी सहायक के रूप में तैनात है। हादसे के बाद वहां उसके खिलाफ सेवा समाप्ति की कार्रवाई की तैयारी भी शुरू हो गई है। सत्संग आयोजन में उसकी लगन को देखते हुए उसे मुख्य सेवादार की जिम्मेदारी दी गई थी।

सिकंदराराऊ के फुलरई मुगलगढ़ी में हुए सत्संग की अनुमति भी देवप्रकाश ने ही उपजिलाधिकारी सिकंदराराऊ से ली थी। इस कारण हादसे के बाद वह पुलिस के रडार पर है। उसके सिकंदराराऊ स्थित घर पर ताला लटका है। पुलिस कई बार उसके घर दबिश भी दे चुकी है।

देवप्रकाश करीब 10 वर्ष पूर्व वह एटा जिले के अवागढ़ ब्लॉक की ग्राम पंचायत सलेमपुर गादरी के मजरा सलेमपुर को छोड़कर सिकंदराराऊ में आकर बस गया। वर्तमान में वह सिकंदराराऊ के मोहल्ला दमदपुरा नई कॉलोनी में रह रहा है। हालांकि देव प्रकाश की मां ब्रह्मा देवी और पिता राम सिंह अभी भी अवागढ़ के गांव सलेमपुर में स्थित पैतृक मकान में ही रहते हैं।

देवप्रकाश का बड़ा भाई अखिलेश कुमार निधौली कलां स्थित विद्युत निगम में लाइनमैन के पद कार्य करता है। पैतृक गांव में रहने के दौरान ही वह नारायण साकार हरि बाबा के सत्संग से जुड़ गया था। सिकंदराराऊ में आते ही यहां सत्संग के कार्यों में तल्लीनता से जुड़ने के कारण उसे मुख्य सेवादार की जिम्मेदारी मिल गई।

देवप्रकाश मधुकर की आय और शान-बान को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। यहां मनरेगा में तकनीकी सहायक के रूप में उसे 11 हजार प्रतिमाह मानदेय मिलता था। इस मानदेय में पैतृक गांव से लेकर सिकंदराराऊ तक कैसे मकान बना लिए, इससे पर्दा उठना बाकी है।