समाज में किन्नरों की क्या है भूमिका, सरकार व राजनीतिक दलों का किन्नरों के प्रति क्या नजरिया है, वोट के बदले नई सरकार से किन्नरों को क्या है उम्मीदें
उत्तराखंड में 19 अप्रैल को पहले चरण में पांचों लोस सीटों पर अब मतदान है। आम चुनाव में एक-एक वोट का अपना महत्व है। चुनाव आयोग से लेकर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि हर वर्ग, धर्म, जाति व उम्र के वोटरों को मतदान के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व में अगर कहीं किसी वोटर की चर्चा नहीं हो रही है, तो वह है ट्रांसजेंडर (किन्नर) मतदाता हैं। किन्नर का वोट भी सामान्य वोटर की तरह सरकार बनाने में अपनी भूमिका निभाता है। उत्तराखंड में करीब 297 किन्नर मतदाता हैं। किन्नर समाज सरकार से क्या चाहते हैं? किन्नर अखाड़ा परिषद की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने क्या कहा जाने।
- समाज में किन्नरों की क्या है भूमिका?
किन्नर भी इंसान ही हैं। सामाजिक भेदभाव से किन्नर हाशिये पर ही हैं। उनको तिरस्कार भी झेलना पड़ता है। बदलते वक्त के साथ ही कुछ लोगों का नजरिया उनके प्रति भी बदला है। खासकर 2021 में हरिद्वार कुंभ मेले में किन्नर अखाड़ा के शाही स्नान व पेशवाई में लोगों ने किन्नरों को बहुत करीब से देखा व समझा है। इससे लोगों में किन्नरों के प्रति भ्रांतियां भी कम हुई हैं। अधिकतर लोगों की सोच अभी भी बदलनी बाकी है।
- सरकार व राजनीतिक दलों का किन्नरों के प्रति क्या नजरिया है?
सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता भी दी है। लोकतंत्र में एक आम वोटर की तरह मतदान का अधिकार भी मिला है। किन्नर सरकार चुनने में अपनी अहम भूमिका भी निभाते हैं। कोई भी दल वोट मांगने उनके पास तक नहीं आता है। किन्नर सजग नागरिक की भूमिका निभाते हुए खुद वोट डालने जाते हैं। सरकारों की नजर में किन्नर उपेक्षित ही हैं। हालांकि, सरकार ने किन्नरों को कुछ अधिकार भी जरूर दिए हैं, लेकिन धरातल में उनको लागू ही नहीं किया जाता है।
- वोट के बदले नई सरकार से किन्नरों को क्या है उम्मीदें?
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की तरह सरकार को किन्नर बचाओ-किन्नर पढ़ाओ जागरूकता अभियान को चलाने की जरूरत है। किन्नर बच्चे को भी पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उनके लिए माहौल ही नहीं होता। स्कूलों में शिक्षक से लेकर बाकी छात्रों के बीच भेदभाव को झेलना पड़ता है। जिसके चलते किन्नर के बच्चे स्कूल ही छोड़ देते हैं। अशिक्षा से समाज की मुख्य धारा से भी कट जाते हैं। किन्नर बच्चों के लिए अलग से योजना बनाने की भी जरूरत है।
- क्या नाच-गाना ही किन्नरों का पेशा है या फिर मजबूरी?
कई किन्नर पढ़े-लिखे भी हैं। कॉरपोरेट जगत ने उनके लिए नौकरी के दरवाजे भी खोले हैं। कई शहरों में किन्नर नौकरी कर आम इंसान की तरह जीवन यापन भी कर रहे हैं। सरकार को भी चाहिए कि किन्नरों के लिए हर विभाग में नौकरी के दरवाजे भी खोले। उनके लिए अल्पसंख्यक कोटे का आरक्षण भी लागू किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक का दर्जा देने के आदेश भी दिए हैं। कोई भी किन्नर अपनी मर्जी से नाच-गाना या ताली बजाकर मांगकर खाना भी नहीं चाहता है। वह सिर उठाकर समाज में जीना भी चाहता है।
- किन्नरों की आबादी अधिक व वोटर संख्या काफी कम क्यों है और क्या है वजह?
किन्नरों की वास्तविक संख्या आयोग की मतदाता सूची की तुलना में काफी अधिक भी है। कुछ किन्नर जागरूकता के अभाव में अपना नाम वोटर लिस्ट में दर्ज ही नहीं करा पाते हैं। आयोग की ओर से किन्नरों को वोटर आईडी बनाने के लिए जागरूक ही नहीं किया जाता है, जबकि काफी संख्या में किन्नर महिला व पुरुष वोटर के रूप में भी दर्ज हैं।
- क्या किन्नर बीमार नहीं पड़ते, किन्नर कहां इलाज करवाते हैं?
किन्नर भी हाड़-मांस के बने हैं व उनके शरीर में भी खून दौड़ता है। आम इंसान की तरह उनको भी बीपी, शुगर व अन्य बीमारियां भी होती हैं। अस्पताल में उनके साथ भेदभाव भी होता है। अपमानजनक शब्दों से भी पुकारते हैं। किन्नरों के इलाज के लिए अस्पताल में अलग ही व्यवस्था होनी चाहिए।
- किन्नर मतदाताओं के लिए कोई पैगाम देना चाहें तो आप क्या कहेंगी?
मैं खुद हर चुनाव में मतदान भी करती हूं। अखाड़ों से जुड़े किन्नरों को इसके लिए प्रेरित भी करती हूं। लोस चुनाव से किन्नरों से निवेदन करूंगी कि वह मताधिकार भी जरूर करें। अपने अधिकार पाने के लिए वोट ही उनका सबसे बड़ा हथियार भी है। उम्मीद करूंगी कि आयोग भी किन्नरों की बस्ती में जाकर उनको मताधिकार का लिए जागरूक भी कराए।
9. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी भरतनाट्यम पोस्ट ग्रेजुएट हैंI
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ब्राह्मण परिवार से हैं। महाराष्ट्र के ठाणे में 13 दिसंबर 1978 को जन्मी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी भरतनाट्यम में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं। पहली बार टीवी शो बिग बॉस के 5वें सीजन में कंटेस्टेंट रहने के बाद चर्चाओं में भी आई। उनकी लिखी किताब ”मी हिजड़ा, मी लक्ष्मी” ने उनको देशभर में सुर्खियां भी दिलाई। 2021 में किन्नर अखाड़ा की आचार्य महामंडलेश्वर की पदवी पर बैठने से देश-दुनिया उनसे रूबरू भी हुई। लक्ष्मी नारायण साल 2008 में संयुक्त राष्ट्र के एशिया पैसिफिक सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करने वाली पहली ट्रांसजेंडर भी हैं। वो कोरियोग्राफर, मॉडल के रूप में कार्य भी कर चुकी हैं। हिंदी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, अंग्रेजी, जर्मन व फ्रेंच जैसी भाषा भी बोलती हैं।
उत्तराखंड में जिलेवार ट्रांसजेंडर मतदाता
हरिद्वार – 142
देहरादून – 76
ऊधमसिंह नगर – 39
नैनीताल – 16
पौड़ी – 09
अल्मोड़ा – 05
चमोली – 02
टिहरी – 05
उत्तरकाशी – 02
पिथौरागढ़ – 01