मजबूत निर्माण के लिए जरूरी है पारंपरिक स्थापत्य शैली और वैज्ञानिक सोच: विशेषज्ञ

पौड़ी ,  आधुनिक दौर में बहुमंजिला इमारतों और भारी निर्माण की बढ़ती प्रवृत्ति ने पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि पर दबाव बढ़ा दिया है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि मजबूत और टिकाऊ निर्माण के लिए पारंपरिक स्थापत्य शैली, स्थानीय जलवायु व भूगर्भ के अनुकूल निर्माण सामग्री और लचीली तकनीकों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है।

जीबी पंत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, घुड़दौड़ी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के विशेषज्ञ डॉ. सरीष चंद्रवंशी का कहना है कि, “प्राचीन भारत में निर्माण कार्यों के पीछे केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि गहरी वैज्ञानिक सोच और संतुलन की भावना होती थी। निर्माण से उत्पन्न दबाव भूमि की वहन क्षमता से अधिक नहीं होता था।”

केदारनाथ मंदिर बना उदाहरण

2013 की विनाशकारी बाढ़ में जहां पूरा क्षेत्र तबाह हो गया, वहीं केदारनाथ मंदिर आज भी अपनी जगह अडिग खड़ा है। डॉ. चंद्रवंशी इस उदाहरण को पारंपरिक स्थापत्य शैली की श्रेष्ठता का जीवंत प्रमाण मानते हैं।

प्राचीन स्थापत्य की विशेषताएं:

  • स्थापत्य शैली: नवदुर्गा, नागर, द्रविड़ और वेसर जैसी शैलियाँ जो संतुलन और मजबूती की दृष्टि से उत्कृष्ट थीं।

  • निर्माण सामग्री: ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर, संगमरमर, चुना-गारा जैसी टिकाऊ सामग्री, जो समय के साथ और भी सुदृढ़ होती गईं।

  • उत्तराखंड की पारंपरिक तकनीकें: दीमक और आर्द्रता प्रतिरोधी लकड़ियों का प्रयोग तथा इंटरलॉकिंग पत्थरों की तकनीक, जिससे भूकंप में इमारतें गिरती नहीं थीं।

  • निर्माण तकनीकी: बिना सीमेंट पत्थरों को आपस में फंसाकर (interlocking) निर्माण, जिससे लचीलापन बना रहता था।

  • संतुलन: भारी गुंबदों और मंडपों को सटीक केंद्र-सरेखण (central alignment) के साथ स्थापित किया जाता था।

  • स्थान का चयन: निर्माण से पूर्व वास्तु, मिट्टी की जांच, जल स्रोत की उपलब्धता और पर्यावरणीय कारकों का पूरा अध्ययन होता था।

आधुनिक निर्माण की चुनौतियां:

डॉ. चंद्रवंशी के अनुसार, “आज बहुमंजिला इमारतों और भारी कंक्रीट ढांचों का निर्माण हो रहा है, जो पहाड़ी क्षेत्रों की ढीली मिट्टी पर अत्यधिक भार डाल रहा है।” पारंपरिक सामग्रियों की तुलना में कंक्रीट का घनत्व कहीं अधिक है, जिससे पहाड़ी जमीन पर असंतुलन बढ़ रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आधुनिक निर्माण कार्यों में पारंपरिक स्थापत्य की मूलभूत वैज्ञानिक सोच को शामिल किया जाए — जैसे संतुलन, लचीलापन, स्थानीय सामग्री का प्रयोग और भौगोलिक अध्ययन — तो पहाड़ी क्षेत्रों में आपदाओं का प्रभाव कम किया जा सकता है। मजबूत इमारतें केवल ईंट और सीमेंट से नहीं बनतीं। उनके पीछे होती है स्थानीय ज्ञान, प्राकृतिक समझ और वैज्ञानिक वास्तु दृष्टिकोण। समय आ गया है कि हम अतीत की उन तकनीकों से सीखें, जो आज भी केदारनाथ मंदिर जैसी संरचनाओं को आपदाओं में भी अडिग बनाए हुए हैं।