उत्तराखंड में भूस्खलन से सड़क बंद होने की समस्या को हल करने के लिए विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट

अब भूस्खलन की वजह से सड़क बंद होने की मुसीबत आने वाले समय में कम होगी। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इसके लिए विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट भी जारी की है। उत्तराखंड की सड़कों पर होने वाले भूस्खलन के संकट को दूर करने में यह रिपोर्ट काफी कारगर भी साबित होगी।

 

मंत्रालय ने माना कि पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों पर होने वाले भूस्खलन का मुख्य कारण उस जोन की सही पहचान व उस हिसाब से ट्रीटमेंट न होना है। इसके लिए मंत्रालय ने आईआईटी दिल्ली के प्रो. डॉ. जेटी साहू के नेतृत्व में विशेषज्ञ समिति भी गठित की थी।

 

सीएसआईआर-सीआरआरआई के चीफ साइंटिस्ट डॉ. पीएस प्रसाद सदस्य सचिव भी थे। इसमें 4 अन्य विशेषज्ञ बतौर सदस्य शामिल थे। समिति ने भूस्खलन साइट पर विभिन्न प्रकार की मिट्टी, चट्टान, ढलान, भू-वैज्ञानिक संरचनाओं, वर्षा, भूस्खलन के प्रकार, चट्टान गिरने और मलबे के प्रवाह आदि के लिए कई प्रकार की जांच जैसे भू-तकनीकी, भू-वैज्ञानिक, भू-भौतिकीय और भूजल आदि पर जोर दिया है।

 

ढलान की बेंचिंग, रिटेनिंग वॉल, मिट्टी की कील, ग्राउंड एंकर, जियोसिंथेटिक मैट, कॉयर जियोटेक्सटाइल, जूट जियोटेक्सटाइल, बायोटेक्निकल ढलान संरक्षण, हरित तकनीक, लचीली रिंग नेट बाधाएं, चेकडैम, सतही जल नालियां, सतह संरक्षण और उप-मृदा नालियां आदि

 

सबसे पहले भूस्खलन क्षेत्र का निरीक्षण भी होगा। उसका ढलान, ढलान की ऊंचाई, ढलान का एंगल, रिसाव का स्रोत, स्लोप से प्रभावित क्षेत्र और रास्ते की बाध्यताएं देखी जाएंगी।

 

प्रभावित क्षेत्र का लिडार या समकक्ष तकनीकों से टोपोग्राफी सर्वेक्षण भी करना होगा। इसके बाद भू-गर्भीय जांच भी करानी होगी, जिसमें फिजियोग्राफी और जियोमॉर्फोलॉजी, रीजनल जियोलॉजी, स्लोप के प्रकार जैसे रॉक स्लॉप, डेबरिस स्लॉप और तालुस स्लोप की पहचान की जाएगी।

 

इसके बाद हाइड्रोलॉजिक और मौसमी जांच करानी होगी, जिसमें कैचमेंट एरिया, पीक डिस्चार्ज और क्षेत्र में वर्षा का इतिहास आदि की जांच होगी। इसके बाद जियो-तकनीकी जांच भी होगी।