जिम कॉर्बेट के ऐतिहासिक स्थलों को हेरिटेज रूप में संजोने की योजना, चंपावत में डाक बंगलों और ट्रेलों का नवीनीकरण
मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट से जुड़े डाक बंगलों के अलावा अन्य वस्तुओं को हेरिटेज का रूप दिया जाएगा। चंपावत जिले में आने वाले लोग शिकारी कॉर्बेट के इतिहास और कार्यशैली को करीब से जान सकेंगे। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया की जानी है।
कुमाऊं और गढ़वाल के निवासी पिछली शताब्दी के दशकों में नरभक्षी बाघों व तेंदुओं के आतंक से ग्रसित थे। तब जिम कॉर्बेट ने 1907 में चंपावत में वर्तमान जिला मुख्यालय के पास अपने जीवन के पहले नरभक्षी बाघिन का शिकार कर यहां के लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी।
जिम कॉर्बेट अपने शिकार के दौरान वन विभाग के मंच, तामली, चूका, कलढूंगा समेत आठ डाक बंगलों में प्रवास करते थे। इसके अलावा जिस स्थान पर जिम कॉर्बेट ने नरभक्षी बाघिन को मारा था उस स्थान को भी ऐतिहासिक बनाने का काम किया जाएगा। एफओ आरसी कांडपाल ने बताया कि जिम कॉर्बेट की ट्रेलों का भी सुधार किया जाएगा।
चंपावत जिले में जिम कॉर्बेट की तीन ट्रेल हैं। इसमें एक-एक किमी, पांच और 20 किमी की ट्रेल शामिल हैं। इन ट्रेलों को ऐतिहासिक रूप में सुधारा जाएगा। सात करोड़ से अधिक की राशि से जिम कॉर्बेट की यादों को संजोए डाक बंगलों को सुधारने का काम किया जाएगा।
जिम कॉर्बेट ने वर्ष 1909 में देवीधुरा मंदिर के पास एक और नरभक्षी बाघ को मारने का प्रयास किया था, लेकिन वह उसे खोज नहीं पाए थे। जिम कॉर्बेट ने 1929 में चंपावत के तल्लादेश के ग्राम ठूलाकोट में नरभक्षी बाघ को मौत के घाट उतारा था। तल्लादेश में बाघ के शिकार के लिए वह टनकपुर, ब्रहमदेव, पूर्णागिरि और चूका होते हुए ठूलाकोट पहुंचा थे। काली नदी और लधिया नदी के संगम चूका में अप्रैल 1938 में एक और नरभक्षी का अंत किया। इसके अलावा 30 नवंबर 1938 को पूर्णागिरि के पुजारियों के गांव टाक में एक और नरभक्षी बाघिन को मारा था। जिम कॉर्बेट ने 1946 में अंतिम नरभक्षी बाघ का शिकार भी चंपावत जिले की लधियाघाटी में किया था।