नेशनल गेम्स: हां, ये हैं पापा की परियां, तैराकी में बेटियों ने जीते 15 स्वर्ण पदक और बढ़ाया मान

नेशनल गेम्स में बेटियों ने दिखाया दम, पापा की परियां साबित कर रही हैं अपनी मेहनत से

सोशल मीडिया पर अक्सर पापा की परियां के नाम से ट्रेंड चलता ही रहता है, लेकिन आजकल की बेटियां इस ट्रेंड को अपनी कामयाबी से चुनौती देती भी नजर आ रही हैं। खासकर नेशनल गेम्स में, जहां बेटियां लगातार पदक जीतकर आलोचकों को गलत भी साबित कर रही हैं। इन खेलों के 4 दिन के भीतर ही तैराकी में बेटियों के पदकों की संख्या 45 तक पहुंच गई है, और ओवरऑल यह आंकड़ा 100 के करीब हो गया है। आज न्यूज़ रिपोर्टर नेटवर्क आपको 2 ऐसी बेटियों से मिलवाते हैं जिन्होंने अपने पापा के नक्शेकदम पर चलते हुए उनकी विरासत को और ऊंचा किया है।

अर्जुन अवार्डी पापा की बेटी ने तैराकी में दिखाया कमाल

38वें राष्ट्रीय खेलों में दिल्ली की भव्या सचदेवा ने एक स्वर्ण समेत 3 पदक जीते हैं। भव्या के पिता भानु सचदेवा, जो खुद अर्जुन अवार्डी तैराक हैं, उन्हें तैराकी के क्षेत्र में प्रेरित किया। भव्या ने बताया कि वे बास्केटबाल और टेनिस भी खेल चुकी थीं, लेकिन पापा के मार्गदर्शन ने उन्हें तैराकी में सफलता भी दिलाई। 8 साल की उम्र से ही भव्या ने प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया था और अब वे बैंकाक में प्रशिक्षण लेकर एशियाई खेलों और ओलंपिक की तैयारी भी कर रही हैं।

पापा की प्रेरणा से डाइविंग में सफलता की नई ऊंचाइयां

महाराष्ट्र के सोलापुर की ईशा ने डाइविंग में रजत पदक जीता है। ईशा ने बताया कि वे पहले केवल तैराकी करती थीं, लेकिन पापा ने उन्हें डाइविंग के लिए प्रेरित भी किया। पापा ने डाइविंग के टॉप खिलाड़ियों की जानकारी जुटाई और ईशा को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया। इससे पहले, ईशा ने गोवा में हुए पिछले नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक भी जीता था। वर्ष 2006 में साउथ एशियन एक्वाटिक्स चैंपियनशिप में भी उन्होंने 2 स्वर्ण पदक जीते थे।

इन बेटियों ने अपने पापा के मार्गदर्शन में मेहनत और संघर्ष से अपनी पहचान बनाई है, और अब वे ना केवल अपनी पापा की परियां, बल्कि खेलों की दुनिया में चमकते सितारे भी बन चुकी हैं।