
धारचूला की ऊंचाई वाली वन पंचायतों में लगेगा हिमालयी संजीवनी ‘सीबकथोर्न’, किसानों को मिलेगा रोजगार
पिथौरागढ़ ज़िले के विकासखंड धारचूला की ऊंचाई वाली वन पंचायतों में अब उच्च औषधीय गुणों वाले पौधे सीबकथोर्न (वन चूक) लगाए जाएंगे। इस योजना से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि स्थानीय किसानों के लिए रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे। वन विभाग पिथौरागढ़ की पहल पर हिमाचल प्रदेश से 5,000 सीबकथोर्न के पौधे मंगाए गए हैं, जिन्हें क्षेत्र की विभिन्न वन पंचायतों में रोपा जाएगा।
कृषकों को मिला प्रशिक्षण, जानेंगे उत्पादन और विपणन की बारीकियां
प्रभागीय वनाधिकारी आशुतोष सिंह ने बताया कि 21 से 27 अप्रैल तक धारचूला के 14 किसानों और विभागीय कर्मचारियों को हिमाचल प्रदेश में विशेष प्रशिक्षण दिया गया। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, मौहल (कुल्लू) में इंजीनियर आरके सिंह और वैज्ञानिक सरला ने सीबकथोर्न की कृषि, संरक्षण, औषधीय उपयोग और विपणन की विस्तृत जानकारी दी।
इसके अलावा कृषि विवि की शाखा कुकुमसेरी (उदयपुर) में सीबकथोर्न की पौधशाला की स्थापना की प्रक्रिया और केलांग के पास पौधरोपण का व्यावहारिक प्रदर्शन कराया गया। खंगसार के प्रगतिशील किसान अमर सिंह ठाकुर ने प्रशिक्षण दल को अपने बागीचे का भ्रमण कराया और 5,000 पौधे भी उपलब्ध कराए। दल का नेतृत्व वैज्ञानिक डॉ. विजय प्रसाद भट्ट ने किया।
हिमालय की संजीवनी: पर्यावरणीय और औषधीय दृष्टि से अमूल्य
सीबकथोर्न को हिमालय की संजीवनी कहा जाता है। यह पौधा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पनपता है और पर्यावरणीय व औषधीय दृष्टि से बेहद उपयोगी है। राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा संचालित इस परियोजना के तहत ड्रिल्बू नामक उच्च उत्पादकता वाली किस्म का चयन किया गया है, जो पारंपरिक जंगली किस्म की तुलना में अधिक फल देती है।
वन विभाग का उद्देश्य – पर्यावरण संरक्षण के साथ आजीविका सशक्तिकरण
वनाधिकारी आशुतोष सिंह ने बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य सीबकथोर्न के वृहद स्तर पर उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन को बढ़ावा देना है। इससे न केवल क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों को वैकल्पिक आजीविका का सशक्त माध्यम भी मिलेगा।
इस पहल में वालिंग, बोन, नागलिंग, चल जैसे गांवों के सरपंचों समेत वन रक्षक और स्थानीय प्रतिनिधियों की भी सहभागिता रही।