पृथ्वी ने बनाया नया रिकॉर्ड, 9 जुलाई 2025 रहा अब तक का सबसे छोटा दिन

देहरादून। 9 जुलाई 2025 का दिन पृथ्वी के ज्ञात इतिहास में अब तक का सबसे छोटा दिन भी बन गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस दिन पृथ्वी की घूर्णन अवधि सामान्य 24 घंटे से 1.31 मिली सेकंड कम भी रही। यह अंतर भले ही बेहद मामूली लगे, लेकिन खगोलशास्त्र व पृथ्वी विज्ञान के नजरिए से यह एक बड़ी घटना भी मानी जा रही है।

क्यों घट रहा है दिन का समय?

पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सामान्यतः 24 घंटे में एक चक्र पूरा भी करती है, लेकिन उसकी घूर्णन गति कई कारकों से प्रभावित भी होती है — जैसे सूर्य व चंद्रमा का गुरुत्वीय खिंचाव, ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने से द्रव्यमान का पुनर्वितरण, चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव व यहां तक कि पृथ्वी पर बने विशाल बांध इस गति को प्रभावित भी करते हैं।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (ARIES) के वैज्ञानिक डॉ. शशि भूषण पांडे के अनुसार, पृथ्वी की गति में यह अंतर स्वाभाविक खगोलीय घटनाओं व जलवायु परिवर्तन जैसे मानवीय प्रभावों का सम्मिलित परिणाम भी है।

पहले भी घट चुका है दिन

यह पहला मौका नहीं है जब पृथ्वी ने इतनी तेजी से खुद को घुमाया भी हो। 5 जुलाई 2024 को दिन 1.66 मिली सेकंड छोटा दर्ज भी किया गया था। वैज्ञानिकों ने 1970 के दशक से पृथ्वी के रोटेशन की निगरानी शुरू की थी और तब से लेकर अब तक बदलाव स्पष्ट रूप से देखे भी जा रहे हैं।

चंद्रमा की दूरी का असर

आगामी 22 जुलाई व 5 अगस्त 2025 को भी दिन सामान्य से छोटा ही रह सकता है। इसका कारण यह है कि इन तिथियों पर चंद्रमा पृथ्वी की भूमध्य रेखा से अधिकतम दूरी पर ही होगा, जिससे उसकी गुरुत्वीय खिंचाव का प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति को बढ़ा भी सकता है।

कैसे होती है निगरानी?

1960 के दशक से वैज्ञानिक परमाणु घड़ियों का उपयोग कर पृथ्वी की घूर्णन गति को मिली सेकंड तक की शुद्धता से मापते ही आ रहे हैं। वर्ष 1972 से यूनिवर्सल टाइम (UT1) व इंटरनेशनल एटॉमिक टाइम (TAI) की तुलना से यह बदलाव दर्ज भी किए जाते हैं।

अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी रोटेशन व संदर्भ प्रणाली सेवा (IERS) ने 9 जुलाई 2025 को अब तक का सबसे छोटा दिन भी घोषित किया है।

वैज्ञानिकों की नजर

विश्वभर के वैज्ञानिक इस घटना पर बारीकी से अध्ययन भी कर रहे हैं। NASA की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2000 से 2018 के बीच बर्फ व भूजल में हुए बदलावों के कारण पृथ्वी के दिन 1.33 मिली सेकंड तक बढ़ भी चुके हैं। यह घटना दर्शाती है कि पृथ्वी की रोटेशन स्थिर न होकर निरंतर परिवर्तनशील भी है।