रुद्रपुर में किसानों का सांसद के खिलाफ प्रदर्शन

 

रुद्रपुर में सांसद अजय भट्ट दिशा की बैठक में व्यस्त होने की वजह से संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर ज्ञापन देने पहुंचे किसान नेताओं से मिल ही नहीं पाए। डेढ़ घंटे इंतजार के बाद किसानों ने कलक्ट्रेट में सांसद के खिलाफ नारेबाजी कर प्रदर्शन भी किया। उन्होंने ज्ञापन की प्रतियां जलाते हुए सांसद को किसान व मजदूर विरोधी करार दिया।

बीते गुरुवार को बगवाड़ा मंडी में संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेताओं ने मांगों को लेकर भी बैठक की। इसके बाद किसान कलक्ट्रेट में चल रही दिशा की बैठक में शामिल होने आए सांसद अजय भट्ट को ज्ञापन देने भी पहुंचे। सांसद के दिशा की बैठक में व्यस्त होने के चलते किसान नेताओं ने बैठक स्थल के बाहर करीब डेढ़ घंटा इंतजार किया। सांसद के नहीं मिलने पर उन्होंने कलक्ट्रेट परिसर में नारेबाजी की और प्रदर्शन कर ज्ञापन की प्रतियां भी जला दी।

वहां पर भाकियू एकता उग्राहां के प्रदेश अध्यक्ष बल्ली सिंह चीमा, अखिल भारतीय किसान सभा के जगीर सिंह, तराई किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष सद्दाम पाशा, जसवीर सिंह, टीकेयू के जिलाध्यक्ष कावल सिंह, गुरदीप सिंह, प्यारा सिंह, प्रकट सिंह और सुरेश सिंह राणा आदि थे।

तराई किसान संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष तजिंदर सिंह विर्क ने कहा कि 10 जुलाई को दिल्ली में एसकेएम की बैठक में देशभर में सांसदों को मांग पत्र देने का फैसला भी लिया गया था। इसमें भारत सरकार के सचिव को 9 दिसंबर 2021 को किसानों की मांगों की, दी गई चिट्ठी पर कार्रवाई न होने पर सांसदों से आने वाले बजट सत्र में उनकी मांगों को उठाने के लिए ज्ञापन भी देना था। ज्ञापन देने के लिए किसान डेढ़ घंटा तक इंतजार करते रहे लेकिन सांसद बैठक से बाहर ही नहीं आए।
उन्होंने किसान और जनता की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। कहा कि जब सांसद सुन ही नहीं रहे तो फिर ज्ञापन देने का कोई फायदा भी नहीं। भूमि बचाओ मुहिम के सदस्य जगतार सिंह बाजवा ने कहा कि सांसद के प्रतिनिधि से समय लेकर ही किसान आए थे। एसकेएम के राष्ट्रीय मुद्दों समेत बाजपुर में एक वर्ष से मांगों को लेकर धरने पर बैठे किसानों के विषय, बारिश में उजाड़े गए घरों का मामला, किसानों के भुगतान और धान के मूल्यों आदि को लेकर ज्ञापन देना था लेकिन सांसद समय पर ही नहीं निकल पाए। जो बड़ा ही निराशाजनक भी है।

ये मांगें उठाई –

-बाजपुर के किसानों, मजदूरों और व्यापारियों के छीने गए भूमिधरी अधिकार को तत्काल वापस किया जाए।

-बाढ़ प्रभावितों को 50,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा भी दिया जाए।

-अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी सिंचाई नलकूपों को मुफ्त बिजली और घरेलू उपयोग के लिए 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाए।

-किसान पेंशन की राशि 10 हजार रुपये प्रति माह की जाए।

-आगामी सत्र में गन्ना मूल्य 500 रुपये प्रति क्विंटल भी दिया जाए।

-छत्तीसगढ़, उड़ीसा और केरल आदि प्रदेशों की तरह यहां भी धान का मूल्य 3,150 रुपये क्विंटल दिया जाए।

-जंगली जानवरों से प्रभावित किसानों को मोटर दुर्घटना बीमा की तरह मुआवजा भी दिया जाए।

-उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी पारिवारिक भूमि हस्तांतरण कानून भी हो।

-सीलिंग भूमि आवंटन नियमावली में संशोधन गैर संवैधानिक भी है। किसानों, मजदूरों और आम नागरिक के हितों के विरुद्ध है। संशोधन निरस्त भी किया जाए।