यहां भोलेनाथ भगवान श्रीकृष्ण की गोपी के रूप में पूजे जाते हैं, मंदिर परिसर में 5 मीटर लंबा त्रिशूल भी स्थापित है, जो श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र भी है

चमोली जनपद में भोलेनाथ के कई भव्य मंदिर भी हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर गोपेश्वर में भी है, जहां भोलेनाथ भगवान श्रीकृष्ण की गोपी के रूप में भी पूजे जाते हैं। यह मंदिर अपनी दिव्य व भव्य निर्माण शैली के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर के साथ कई रहस्य जुड़े हैं।

चमोली जनपद मुख्यालय गोपेश्वर के मध्य में स्थित गोपीनाथ मंदिर का निर्माण नवीं व ग्यारहवीं शताब्दी में कत्युरी वंश के शासकों ने ही करवाया था। यह स्थान पूर्व में गौचर की भूमि भी थी। मान्यता है कि एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजाकर गोपियों संग रासलीला कर रहे थे, तब भगवान भोलेनाथ भी इस रासलीला पर मोहित ही हो गए थे। वे भी गोपी रूप धारण कर वहां पहुंच गए, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान ही लिया था। तब श्रीकृष्ण ने भोलेनाथ को गोपीनाथ नाम से संबोधित कर उन्हें इस स्थान पर जगत कल्याण के लिए दर्शन देने की इच्छा भी जताई थी।

मंदिर में नित्य प्रतिदिन भगवान गोपीनाथ की पूजा-अर्चना भी की जाती है। मंदिर परिसर में कई दिव्य शिवलिंग विराजमान हैं। मंदिर के पास ही एक कल्पवृक्ष है, जो वर्षभर हराभरा ही रहता है। यह मंदिर कई सालों से पुरातत्व विभाग के संरक्षण में ही है।

यहां मंदिर परिसर में 5 मीटर लंबा त्रिशूल भी स्थापित है, जो श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र भी बना रहता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने कामदेव को इसी त्रिशूल से भस्म भी किया था। इस त्रिशूल को पूरे हाथ के बल से भी हिलाया नहीं जा सकता है, लेकिन हाथ की छोटी उंगली से स्पर्श करने से ही त्रिशूल हिलने लगता है। मंदिर परिसर में चारों तरफ दीवारों पर कुछ मंत्र भी लिखे हुए हैं ऐसा माना जाता है कि यह मंत्र जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था तब से ही लिखे गए हैं।

शीतकाल में जब चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं तो रुद्रनाथ की उत्सव डोली को करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित गोपीनाथ मंदिर में ही लाया जाता है। ग्रीष्मकाल में 6 महीने तक रुद्रनाथ भगवान की पूजा अर्चना इसी मंदिर में ही होती है। यहां वर्षभर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला भी बना रहता है।