जीव-जंगल की नई चुनौतियों का पाठ पढ़ेंगे अब आईएफएस अफसर, अब फिर से लाई जा रही सैंडविच मोड की व्यवस्था

अब देश के आईएफएस अफसर वन्यजीव व जंगल की नई चुनौतियों का सामना करने के लिए अब नया पाठ पढ़ेंगे। इसके लिए आईएफएस प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग देने वाले देहरादून के एकमात्र इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी (आईजीएनएफए) ने 3 वर्ष की कोशिशों के बाद नया पाठ्यक्रम भी लागू किया है।

 

पर्यावरण के क्षेत्र में एजुकेशनल रिसर्च करने वाली सीएसआईआर-नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) नागपुर ने ज्ञान, तकनीक व उपकरण आदि प्रदान कर संस्थान को पाठ्यक्रम तैयार करने में भी मदद दी है। साथ ही कोर्स को पढ़ाने के लिए संस्थान को अपने विशेषज्ञ दे रहा है। माना जा रहा है कि बदलते आधुनिक दौर में लगभग 16 महीने की ट्रेनिंग में नए पाठ्यक्रम को पढ़ने के बाद पहले से अधिक आधुनिक व मजबूत आईएफएस देश को भी मिल सकेंगे।

 

आईजीएनएफए के निदेशक डॉ. जगमोहन शर्मा का कहना है कि 20 वर्ष से फॉरेस्ट सेक्टर में चर्चा कर रहे हैं कि 2047 के विकसित भारत के ध्येय से पाठ्यक्रम मेल खाता है या नहीं। 3 वर्ष से इस पर काम चल रहा था, जिसके बाद नवंबर 2023 से हमने नया पाठ्यक्रम लागू कर दिया है। कोर्स के 90 प्रतिशत हिस्से में जंगल, वन्यजीव, पर्यावरण प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन व जैव विविधता को केंद्र में रखा गया है।

 

आपदा के समय जंगल में राहत कार्य के दौरान फंस जाएं तो आईएफएस खुद को कैसे जीवित भी रख सकते हैं। खाने पीने, सोने समेत जंगली जानवरों से सुरक्षा व नदियों को पार कर बाहर निकलने के लिए किन संसाधनों और विधियों का प्रयोग करना होगा। नए पाठ्यक्रम में इसकी पूरी ट्रेनिंग का इंतजाम भी किया जाएगा। यह कोर्स का अनिवार्य हिस्सा भी होगा।

 

पुराने पाठ्यक्रम में आईजीएनएफए देहरादून में 16 महीने की प्रोफेशन ट्रेनिंग पूरी करने के बाद फील्ड में रहकर 4 माह की ऑन द जॉब ट्रेनिंग करनी होती थी, लेकिन अब 13 महीने बाद प्रशिक्षु फील्ड ट्रेनिंग कर वापस आईजीएनएफए लौटकर बाकी की 3 महीने की ट्रेनिंग पूरी करेंगे। प्रोफेसर राजकुमार वाजपेयी ने बताया कि इसे सैंडविच मोड भी कहा जाता है। वर्ष 1994 से 2006 तक यही व्यवस्था लागू थी, लेकिन सुविधा के अनुसार इसे बंद ही कर दिया गया। अब इसे फिर लाया भी गया है। इससे ट्रेनिंग में फील्ड से मिले फीडबैक पर गहराई से काम भी किया जा सकेगा।

 

नए पाठ्यक्रम में पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ फॉरेस्टरी लैंडस्केप नया विषय भी लागू किया गया है। निदेशक डॉ. जगमोहन शर्मा ने बताया कि उत्तराखंड जैसे वन बाहुल्य क्षेत्र की आवश्यकताएं भी अलग हैं। यहां बंदर कुछ उगने नहीं दे रहा है, हाथी या फिर तेंदुआ हमले कर रहा है। इसके लिए पाठ्यक्रम में सिखाया जाएगा कि यहां पर निर्णय लेने की प्रक्रिया किस तरह से होनी चाहिए, अफसर किस तरह से स्थानीय इकाइयों से जुड़कर इसका समाधान भी निकालेंगे।

 

नए कोर्स के अंतर्गत एक विषय में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ड्रोन और जीआईएस समेत अन्य कंप्यूटर आधारित तकनीकियों पर जानकारी दी जाएगी। जबकि, दूसरे विषय में इन सभी तकनीकियों का वानिकी पर किस तरह प्रयोग होगा, इसकी भी जानकारी दी जाएगी।