टूटते परिवार को बचाने के लिए उत्तराखंड में बेहद कम प्रयास, काउंसिलिंग से केवल 13 % ही मामले सुलझते है I

टूटते परिवार को बचाने के लिए उत्तराखंड में बेहद कम ही प्रयास हुए हैं। उत्तराखंड में काउंसलिंग के माध्यम से पारिवारिक मामलों का निपटारा केवल 13 फीसदी ही हो पाता है, जबकि दिल्ली व चंडीगढ़ के जिला न्यायालयों में इसकी स्थिति कहीं बेहतर भी है। दिल्ली राज्य ऐसा है, जहां अब 60 फीसदी तक पारिवारिक झगड़े अदालत पहुंचने से पहले ही सुलझा लिए जाते हैं।

 

पारिवारिक विवादों में काउंसलिंग की भूमिका पर यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट की परिवार न्यायालय समिति के सेमिनार में ही दी गई। राजपुर रोड स्थित एक होटल में हुए दो दिवसीय कार्यक्रम का बीते रविवार को समापन हो गया। मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने समापन सत्र में परिवार न्यायालय संबंधी मामलों पर विचार भी रखे।

 

अन्य वक्ताओं ने परिवार की संस्था को चलाने में पति-पत्नी की जिम्मेदारी के बारे में भी जानकारी दी। इससे पहले परिवार के झगड़ों को निपटाने के लिए काउंसलिंग की भूमिका पर भी जोर दिया गया। काउंसलिंग की भूमिका में दिल्ली को एक नजीर की तरह भी पेश किया गया। बताया गया कि दिल्ली ने एक लंबा सफर भी तय किया है। अब दिल्ली में 11 जिलों में 30 पारिवारिक न्यायालय भी हैं।

 

साल 2023 में काउंसलिंग से निपटने वाले मामलों का प्रतिशत 51 था, जबकि माह फरवरी 2024 में यह प्रतिशत 60 से भी ज्यादा हो गया है। वक्ताओं ने चंडीगढ़ के सेक्टर-43 की जिला न्यायालय का उदाहरण देते हुए बताया, उसकी स्थिति देश में सबसे बेहतर भी है। वहां पर महिला हेल्पलाइन के स्तर से ही ज्यादातर मामलों का निपटारा भी कर दिया जाता है। मई 2022 से मार्च 2024 तक 2,274 मामले ही पहुंचे थे।

 

इनमें 848 मामलों का निपटारा कर दिया गया जो कुल 37 फीसदी ही है। उत्तराखंड की बात करें तो यहां पर काउंसलिंग का स्तर बेहद कम भी है। राज्य में साल 2022 से मार्च 2024 के बीच सफल काउंसलिंग का प्रतिशत केवल 13 रहा। ऐसे में यहां पर काउंसलिंग बढ़ाने के लिए हाईकोर्ट ने 4 बड़े जिलों देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंह नगर के परिवार न्यायालयों में काउंसर तैनात करने के निर्देश भी दिए थे।