किसी जमाने में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता दूरस्थ गांवों में साइकिल से ही पहुंचकर चुनाव प्रचार करते थे।

किसी जमाने में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता दूरस्थ गांवों में साइकिल से ही पहुंचकर चुनाव प्रचार करते थे। जिन कार्यकर्ताओं के पास साइकिल होती थी, उनको चुनाव प्रचार में विशेष तरजीह भी दी जाती थी। साइकिल वाले कार्यकर्ताओं पर चुनाव प्रचार का दारोमदार भी हुआ करता था। तब यह भी माना जाता था कि जिसके पास जितने अधिक साइकिल वाले कार्यकर्ता होंगे, वह दूसरे प्रत्याशियों से प्रचार में आगे ही रहेगा।

 

मौजूदा समय में चुनाव में दोपहिया वाहन की रैली का जोर रहता है। 60 से लेकर 90 के दशक तक साइकिल रैलियों का जोर ही रहता था। चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के पास यातायात के साधन भी कम होते थे। लंबे समय तक डोईवाला की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कपिल अग्रवाल ये बताते है कि महज कुछ कारों के जरिए लोकसभा का बड़ा चुनाव उम्मीदवार लड़ने के लिए मैदान में भी उतरते थे। ऐसे में प्रचार में साइकिल का बहुत ही उपयोग होता था। जिसके पास साइकिल होती थी, उनको चुनाव प्रचार में विशेष तरजीह भी मिलती थी।

 

कहा, अविभाजित मसूरी विधानसभा का हिस्सा रहे डोईवाला क्षेत्र के दूरस्थ गांवों तक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता साइकिल से पहुंचकर पोस्टर भी चस्पा करने से लेकर जनसंपर्क तक का कार्य को करते थे। कपिल अग्रवाल बताते है कि उस समय यातायात के साधन कम होने के कारण युवाओं का जत्था साइकिल पर ही सवार होकर दिन भर चुनाव प्रचार भी करता था। आज के समय में साइकिल से प्रचार का वह रोमांच ही खत्म हो गया है।