एक समय : कथावाचक गोपाल मणि महाराज ने 2019 में टिहरी गढ़वाल से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़कर राजनीति की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया।

राजनीति के क्षेत्र में सफलता की हमेशा गारंटी भी नहीं होती है, यहां तक कि समाज में महत्वपूर्ण प्रभाव रखने वाले व्यक्तियों के लिए भी। रामकथा के प्रसिद्ध कथावाचक व प्रचारक गोपाल मणि महाराज ने वर्ष 2019 में टिहरी गढ़वाल से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़कर राजनीति की दुनिया में कदम रखने का फैसला भी किया था।

 

कथावाचक के जिस तादाद में अनुयायी हैं, उन्हें यही लगा कि चुनाव में ये वोटों में भी बदलेंगे। अपनी प्रसिद्धि व अपने अभियान में कई महिलाओं के समर्थन के बावजूद गोपालमणि को केवल 1.2 प्रतिशत वोट यानी 10,686 वोट हासिल करके करारी हार का सामना भी करना पड़ा। यहां तक उनके गृह ब्लॉक चिन्यालीसौड़ में उन्हें बहुत ही कम वोट मिले।

 

गोपालमणि के चुनावी नतीजे यह बताते हैं कि एक क्षेत्र में लोकप्रियता व प्रभाव जरूरी नहीं कि दूसरे में सफलता में तब्दील भी हो जाए। गोपालमणि ने एक कथावाचक व गोरक्षा के वकील के रूप में भले ही समर्पित अनुयायी प्राप्त किए हों, लेकिन राजनीति में उनके प्रवेश के लिए कौशल व रणनीतियों के एक अलग सेट की ही आवश्यकता थी। एक राजनीतिक उम्मीदवार में मतदाताओं की प्राथमिकताएं व अपेक्षाएं एक आध्यात्मिक या सामाजिक नेता से अलग भी होती हैं।

 

इसके अलावा गोपालमणि की हार चुनावी राजनीति की जटिलताओं व चुनौतियों को उजागर भी करती हैं। चुनाव लड़ने के लिए नीतिगत मुद्दों की गहरी समझ, प्रभावी संचार कौशल व विविध प्रकार के मतदाताओं से जुड़ने की क्षमता की जरूरत भी होती है। गोपाल मणि का धार्मिक प्रवचनों व गोरक्षा पर ध्यान शायद आबादी के एक खास वर्ग को पसंद भी आया हो, लेकिन यह प्रतिस्पर्धी चुनावी मुकाबले में व्यापक समर्थन हासिल करने के लिए पर्याप्त भी नहीं था।