आखिर गुस्से में क्यों आते हैं आंसू, बहस के बीच क्यों आते है आंसू

जब लोग गुस्सा होते हैं तो आखिर क्या करते हैं? आसपास के उदाहरण देखें तो पाएंगे कि कुछ आक्रामक होकर चिल्लाने भी लगते हैं, तो कुछ तोड़फोड़ पर उतर आते हैं तो वही कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुद ही रोने लगते हैं। वो अपना गुस्सा कड़े शब्दों में जाहिर करना तो चाहते हैं, लेकिन आंसू गुस्से से पहले ही निकल पड़ते हैं। जिस शख्स के साथ बहस कर रहे हों, उसी के सामने रोना कई लोगों को भी अखर जाता है। लेकिन वे चाहकर भी बहस के बीच अपने आंसू को रोक ही नहीं पाते। इसे ‘एंग्री टीयर्स’ यानी गुस्से का आंसू भी कहते हैं। कई लोग इससे छुटकारा भी पाना चाहते हैं। ताकि उनका तर्क ज्यादा मजबूत भी हो और उन्हें दूसरे लोग भावनात्मक रूप से कमजोर भी न समझें।

ये है कुछ आसान टिप्स हैं, जिनकी मदद से बहस के बीच अपने आंसू को काबू में रखा भी जा सकता है।

  • सबसे पहले तो यह समझने की जरूरत है कि गुस्सा अपने आप में कोई इमोशन ही नहीं है। यह किसी फीलिंग या घटना की प्रतिक्रिया मात्र ही है। इसलिए गुस्सा सेकेंडरी इमोशन भी माना जाता है।
  • आमतौर पर जब किसी की भावनाएं आहत होती है, तो उसके मन में गुस्से की प्रतिक्रिया भी होती है। कुछ लोग तो इस भावना को खुल कर जाहिर करते हैं तो वही कुछ अंदर ही अंदर घुटते हैं।
  • जब किसी घटना की प्रतिक्रिया में लोग कुछ ठोस कह पाने या कर पाने की स्थिति में न हों तो वे असहाय भी महसूस करते हैं। यही भावना आंसू को लेकर आती है।
  • साइकोलॉजिस्ट डॉ. सबरीना रॉमनॉफ अपनी रिसर्च में बताती हैं कि गुस्से में या बहस के बीच जब भावनाओं का ज्वर उमरता है और शख्स उसे शब्दों में बयां नहीं कर पाता तो आंसू भी आने लगते हैं।
  • घर-परिवार या फिर पार्टनर के साथ बहस में रो भी लें तो भी खास दिक्कत नहीं होती।
  • लेकिन प्रोफेशनल मीटिंग में या सार्वजनिक रूप से ऐसी स्थिति आए तो ध्यान कहीं और लगाने की कोशिश भी करें, आंखें बड़ी करके देखें और सोचें कि ये सब क्या हो रहा है।
  • चेहरे की मांसपेशियों को टाइट रखते हुए ठोढ़ी को कुछ ऊपर की ओर उठाएं और लंबी व गहरी सांस लेते रहें। ऐसी स्थिति में न चाहते हुए भी रो पड़ने की आशंका भी कम हो जाएगी।

गुस्से में निकले आंसू तन व मन को करते बैलेंस

  • गुस्से के चलते दिल की धड़कन, सांसों की दर और पल्स भी बढ़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में शख्स की सोचने-समझने की क्षमता भी कम हो जाती है। वह सही फैसले ही नहीं ले पाता।
  • बॉडी इस बात को बखूबी जानती और समझती है। इसलिए ऐसे मौके पर रोना ही आता है। रोने से निकलने वाले आंसू सांसों की दर, दिल की धड़कन और पल्स को नॉर्मल भी करते हैं।
  • रिसर्च की मानें तो गुस्से में निकलने वाले आंसू की वजह से बॉडी में ऑक्सीटोसिन व प्रोलैक्टिन जैसे हॉर्मोन भी रिलीज होते हैं।
  • ये हॉर्मोंस बॉडी को नॉर्मल करने में काफी कारगर भी होते हैं। इसलिए गुस्से में आने वाले आंसू बेकार भी नहीं होते।
  • अगर कोई शख्स गुस्से में और किसी तरीके से अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा रहा है, तो उसके आंसू तो निकलेंगे ही।

आंसू निकलने से शरीर को भी मिलता आराम, रोना भी फायदेमंद

  • सबसे सामने रोना किसी को भी अखर सकता है, ये कमजोर होने की निशानी भी मानी जा सकती है। ऊपर बताए गए टिप्स के सहारे बहस में आंसू को रोके भी जा सकते हैं।
  • लेकिन इस पूरी कहानी का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि आंसू आना कोई खराब चीज है और उसे हमेशा रोकने की कोशिश ही करनी चाहिए।
  • आंसू हमारे दिल, दिमाग व शरीर के कई तरीके से फायदे पहुंचा सकता है। चाहे वो आंसू खुशी के हों या गम के या तो फिर गुस्से में निकलने वाले एंग्री टीयर्स।
  • दरअसल, हमारे शरीर में ‘कार्टिसोल’ नाम का एक केमिकल नेचुरली बनता ही रहता है। शरीर में रहकर ये केमिकल डिप्रेशन, एंग्जाइटी व हाइपर टेंशन का कारण भी बनता है।
  • इस खतरनाक केमिकल को शरीर से बाहर निकालने का एक ही रास्ता है, तो खुलकर रोइए।
  • आंसुओं के जरिए ये बॉडी से बाहर भी निकल जाता है। रोने से शरीर में ‘कार्टिसोल’ की मात्रा कम भी हो जाती है और इंसान खुश, स्वस्थ व फ्रेश फील करने लगता है।

महीने में 4 बार रोतीं महिलाएं और पुरुष सिर्फ 1 बार

  • नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं व बच्चे एडल्ट पुरुषों की मुकाबले ज्यादा ही आंसू बहाते हैं। इनमें एंग्री टीर्यर यानी गुस्से में आंसू आने की संभावना भी ज्यादा होती है। औसतन एक महिला महीने में 4 बार रोती है। जबकि इनके मुकाबले पुरुषों में यह दर एक से भी कम है।